माझ्या कविता व चारोळ्या
10.16.2009
मन हळव होत
मन हळव होत माझ
हिरवा निसर्ग पाहताना
बागडतो मी स्वछन्दी हवेत
हिरवी पिके डोलताना
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लक्ष्मण शिर्के
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