कामावर निघताना सुद्धा
थंडीचा असतो बहर
जावेच लागते कामावर जरी
मनात दांडी मारण्याची लहर
___________
लक्ष्मण शिर्के
शब्दांनी मी कधीच दुर नाही
शब्द आहेत माझे सखे
वेडेवाकडे कसेही चालतात
कधीही राहत नाहीत मुके
___________
लक्ष्मण शिर्के
शांतपणे रस्ता चालताना
अनेक विचार मनात येतात
विचारांच्या गोंधळात कित्येक वेळा
विसरतो किती वळणे जातात
___________
लक्ष्मण शिर्के
हसतीलही मला आज
पण नाही कुणावर रागावणार
पण मनाची ओळख त्यांच्या
मला सहज लगेच भावणार
___________
लक्ष्मण शिर्के
आपत्तीस कारण झाले
व्रुक्षतोड केली मानवाने
तरीपन आपली चुकच नाही
अविर्भाव दाखवितो अभिमानाने
___________
लक्ष्मण शिर्के
पक्षांतर्गत मतभेद
नेहमीच चालु राहतो
निष्पाप मायबापांकडे पाहुन
माझाच मी न राहतो
___________
लक्ष्मण शिर्के
वाटत मनात खुप
नेहमीच मिळाव सुख
पण चालुन येत जीवनात
सुखापेक्षा जास्त दुख
___________
लक्ष्मण शिर्के
1.30.2010
सुखात आणि दुखात
सुखात आणि दुखात
डोळ्यात पाणी आहे
प्रत्येकाची इथे एक
वेगळी कहाणी आहे
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
पुर्व क्षितिजावरुन सुर्यराजा
जेव्हा घेवुन येतो गंध
आसमंतात दरवळतो तेव्हा
मंद धुंद सुगंध
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
प्रेमाचा सुगंध मजला
नेहमीच खात राहतो
भरभरुन प्रेमाचे घडे
सदासर्वदा मागत राहतो
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
एकांतातल्या क्षणांचा हल्ली
जास्त विचार करत नाही
पुन्हा न मिळणारया गोष्टींसाठी
सारखा सारखा झुरत नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
आठवणी मनात जपताना
खंत खुप दाटुन येते
मला पुन्हा पुन्हा वेड्यासारखे
भुतकाळच्या भावविश्वात नेते
___________
लक्ष्मण शिर्के
डोळ्यात पाणी आहे
प्रत्येकाची इथे एक
वेगळी कहाणी आहे
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
पुर्व क्षितिजावरुन सुर्यराजा
जेव्हा घेवुन येतो गंध
आसमंतात दरवळतो तेव्हा
मंद धुंद सुगंध
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
प्रेमाचा सुगंध मजला
नेहमीच खात राहतो
भरभरुन प्रेमाचे घडे
सदासर्वदा मागत राहतो
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
एकांतातल्या क्षणांचा हल्ली
जास्त विचार करत नाही
पुन्हा न मिळणारया गोष्टींसाठी
सारखा सारखा झुरत नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
आठवणी मनात जपताना
खंत खुप दाटुन येते
मला पुन्हा पुन्हा वेड्यासारखे
भुतकाळच्या भावविश्वात नेते
___________
लक्ष्मण शिर्के
सलाम त्या झेंड्याला
आईपासुन दुर राहुन
आईची मुर्ती रोज डोळ्यात साठवतो
मनाला कधी वाईट वाटले की
तिच्या मायेचा हात मनात आठवतो
___________
लक्ष्मण शिर्के
आई बाबांचा विश्वास
नेहमीच सार्थ होणार
आपल्यासाठी झिजविलेले मोल
फुकट वाया नाही जाणार
___________
लक्ष्मण शिर्के
मुक्कामाला पोहोचायची
ओढ ही नेहमीच असते
ती एक मानवाची
अंगभुत सवय असते
___________
लक्ष्मण शिर्के
देशाचा तिरंगा अभिमानाने
जेव्हा हवेत फडफडला
हात मस्तकी सलामीस जावुन
नजरेचा रोख आकाशी भिडला
___________
लक्ष्मण शिर्के
सलाम त्या झेंड्याला
सलाम त्या वीर जवानांना
देशासाठी रक्त सांडणारया
सलाम त्या कट्टर मनांना
___________
लक्ष्मण शिर्के
आईची मुर्ती रोज डोळ्यात साठवतो
मनाला कधी वाईट वाटले की
तिच्या मायेचा हात मनात आठवतो
___________
लक्ष्मण शिर्के
आई बाबांचा विश्वास
नेहमीच सार्थ होणार
आपल्यासाठी झिजविलेले मोल
फुकट वाया नाही जाणार
___________
लक्ष्मण शिर्के
मुक्कामाला पोहोचायची
ओढ ही नेहमीच असते
ती एक मानवाची
अंगभुत सवय असते
___________
लक्ष्मण शिर्के
देशाचा तिरंगा अभिमानाने
जेव्हा हवेत फडफडला
हात मस्तकी सलामीस जावुन
नजरेचा रोख आकाशी भिडला
___________
लक्ष्मण शिर्के
सलाम त्या झेंड्याला
सलाम त्या वीर जवानांना
देशासाठी रक्त सांडणारया
सलाम त्या कट्टर मनांना
___________
लक्ष्मण शिर्के
काहीच मिळत नाही हाती
शुर आम्ही सरदार आम्हाला
काय कुणाची भिती
पण नेते, पुढारी आणि राजकारणी
काहीच मिळत नाही हाती
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------------
भिती ही सवयच आहे
कुणाकुणात ती असते
कितीही लपवायला गेली तरी
डोळ्यातुन ती दिसते
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------------
मित्रप्रेम हे असच असत
कधी हसत तर कधी बावरत
एकाचा थोडा जरी पाय घसरला
दुसर त्याला लगेच सावरत
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------------
त्यानच घडवलय आपल्याला
तोच सर्व काही देतो
म्हनुन तर झोपता उठता
आपण त्याचे नाव घेतो
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------------
प्रेमाच्या सफल-विफलतेला
कधीच महत्व देवु नये
मन साथ देणार नसेल तर
इतका जीव लावु नये
___________
लक्ष्मण शिर्के
काय कुणाची भिती
पण नेते, पुढारी आणि राजकारणी
काहीच मिळत नाही हाती
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------------
भिती ही सवयच आहे
कुणाकुणात ती असते
कितीही लपवायला गेली तरी
डोळ्यातुन ती दिसते
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------------
मित्रप्रेम हे असच असत
कधी हसत तर कधी बावरत
एकाचा थोडा जरी पाय घसरला
दुसर त्याला लगेच सावरत
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------------
त्यानच घडवलय आपल्याला
तोच सर्व काही देतो
म्हनुन तर झोपता उठता
आपण त्याचे नाव घेतो
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------------
प्रेमाच्या सफल-विफलतेला
कधीच महत्व देवु नये
मन साथ देणार नसेल तर
इतका जीव लावु नये
___________
लक्ष्मण शिर्के
वेदना या मनीच्या
वेदना या मनीच्या
मी पन कुणाला सांगु
कुणाकडे काय देऊ
आणि काय कुणाला मागु
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------------
आधाराची वाट पाहु नये
वाट एकट्याने चालतच रहावी
थोड जरी दुख वाटल
आजुबाजुची बोलकी दुनिया पहावी
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------------
विचार थोडाच करतो
पन असतो त्यात परमार्थ
प्रेम करतो मी सर्वांशी
त्यात कसलाच नसतो स्वार्थ
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------------
दुसरयाचा पाय फसला
तो त्याचा तोटा होतो
आपण तसा विचार करु नये
उगीच गावभर बोभाटा होतो
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------------
तुचे ते साध भित्रेपणच
मला खुप आवडते
मग एक सखी शोधत
मन मन तुलाच निवडते
___________
लक्ष्मण शिर्के
मी पन कुणाला सांगु
कुणाकडे काय देऊ
आणि काय कुणाला मागु
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------------
आधाराची वाट पाहु नये
वाट एकट्याने चालतच रहावी
थोड जरी दुख वाटल
आजुबाजुची बोलकी दुनिया पहावी
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------------
विचार थोडाच करतो
पन असतो त्यात परमार्थ
प्रेम करतो मी सर्वांशी
त्यात कसलाच नसतो स्वार्थ
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------------
दुसरयाचा पाय फसला
तो त्याचा तोटा होतो
आपण तसा विचार करु नये
उगीच गावभर बोभाटा होतो
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------------
तुचे ते साध भित्रेपणच
मला खुप आवडते
मग एक सखी शोधत
मन मन तुलाच निवडते
___________
लक्ष्मण शिर्के
जेव्हा कळीला येतो बहर
जेव्हा कळीला येतो बहर
फुलतो सुगंध चोहिकडे
फुलपाखरेही मग गुणगुणत
होतात कळीसाठी वेडे
___________
लक्ष्मण शिर्के
-------------------------------------------------
तुझ्या सोबतचे प्रत्येक क्षण
मला झोपुन देत नाहीत
तो समुद्र आणि त्या लाटा
डोळ्यासमोरुनच जात नाहीत
___________
लक्ष्मण शिर्के
-------------------------------------------------
पराभवाने निराश होत नाही
उलट उत्साह वाढतो मनी
पुन्हा मनाची बांधणी चालु होते
घेवुन एक हरलेली कहाणी
___________
लक्ष्मण शिर्के
-------------------------------------------------
क्षणिक सुखात किती काळ रमणार
सुख घे नेहमीच निरंतर
कुठल्याही ध्यास हव्यासापोटी
नको स्वतालाच करु नश्वर
___________
लक्ष्मण शिर्के
-------------------------------------------------
कातरवेळची आठवण
मनाला दुखी करुन जाते
विचार करायला गेल तर
नेहमीच उर भरुन येते
___________
लक्ष्मण शिर्के
फुलतो सुगंध चोहिकडे
फुलपाखरेही मग गुणगुणत
होतात कळीसाठी वेडे
___________
लक्ष्मण शिर्के
-------------------------------------------------
तुझ्या सोबतचे प्रत्येक क्षण
मला झोपुन देत नाहीत
तो समुद्र आणि त्या लाटा
डोळ्यासमोरुनच जात नाहीत
___________
लक्ष्मण शिर्के
-------------------------------------------------
पराभवाने निराश होत नाही
उलट उत्साह वाढतो मनी
पुन्हा मनाची बांधणी चालु होते
घेवुन एक हरलेली कहाणी
___________
लक्ष्मण शिर्के
-------------------------------------------------
क्षणिक सुखात किती काळ रमणार
सुख घे नेहमीच निरंतर
कुठल्याही ध्यास हव्यासापोटी
नको स्वतालाच करु नश्वर
___________
लक्ष्मण शिर्के
-------------------------------------------------
कातरवेळची आठवण
मनाला दुखी करुन जाते
विचार करायला गेल तर
नेहमीच उर भरुन येते
___________
लक्ष्मण शिर्के
मैफ़िल ही रंगणारच
मैफ़िल ही रंगणारच
रंगविणे आपले कामच आहे
नटरंगी या दुनियेत
जगणे आपला नियमच आहे
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------------
कडाक्याच्या थंडीचा महिना
मला सहनच होत नाही
सकाळी सकाळी उठताना
माझी झोपच जात नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------------
दाणा दाणा कणसाला
पाहुन मन उत्साहित होते
माझ्या शेतात हसत
मन पुन्हा पुन्हा जाते
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------------
तुझी गरज नक्कीच भासेल
ध्येय गाठण्यासाठी मला
शब्दांचा आधारही तुझा
सावरेल तेव्हा मला
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------------
अशी का नेहमीच येते
तुला माझी आठवण
ह्रदयाच्या रम्य बागेत
किती करतोस माझी साठवण
___________
लक्ष्मण शिर्के
रंगविणे आपले कामच आहे
नटरंगी या दुनियेत
जगणे आपला नियमच आहे
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------------
कडाक्याच्या थंडीचा महिना
मला सहनच होत नाही
सकाळी सकाळी उठताना
माझी झोपच जात नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------------
दाणा दाणा कणसाला
पाहुन मन उत्साहित होते
माझ्या शेतात हसत
मन पुन्हा पुन्हा जाते
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------------
तुझी गरज नक्कीच भासेल
ध्येय गाठण्यासाठी मला
शब्दांचा आधारही तुझा
सावरेल तेव्हा मला
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------------
अशी का नेहमीच येते
तुला माझी आठवण
ह्रदयाच्या रम्य बागेत
किती करतोस माझी साठवण
___________
लक्ष्मण शिर्के
आज दुनियाच तशी झालीय
आज दुनियाच तशी झालीय
म्हणे असत्य खुप गोड असते
पण जरा आत चाखुन पहा
सत्यापुढे कसलीच तडजोड नसते
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------
सत्य हे सत्य असते
गीतासार हेच शिकविते
कितीही असत्य बोलले
एका सत्यापुढे वाया जाते
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------
प्रेमाची कबुली मी
लगेच देवु शकत नाही
त्या विधात्याशिवाय दुसरा कोणी
नशिब लिहु शकत नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------
घडविले ज्याने मला तो इश्वर
त्याचा अखंड मी पाईक
जन्मभर त्याच्या चरणापाशी
बसेन होवुन मी नाईक
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------
रात्री आकाशाकडे नजर जाता
तुटणारा तारा पाहिला
क्षणभर आयुष्याचा प्रवास
त्यात अडकुन राहिला
___________
लक्ष्मण शिर्के
म्हणे असत्य खुप गोड असते
पण जरा आत चाखुन पहा
सत्यापुढे कसलीच तडजोड नसते
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------
सत्य हे सत्य असते
गीतासार हेच शिकविते
कितीही असत्य बोलले
एका सत्यापुढे वाया जाते
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------
प्रेमाची कबुली मी
लगेच देवु शकत नाही
त्या विधात्याशिवाय दुसरा कोणी
नशिब लिहु शकत नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------
घडविले ज्याने मला तो इश्वर
त्याचा अखंड मी पाईक
जन्मभर त्याच्या चरणापाशी
बसेन होवुन मी नाईक
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------
रात्री आकाशाकडे नजर जाता
तुटणारा तारा पाहिला
क्षणभर आयुष्याचा प्रवास
त्यात अडकुन राहिला
___________
लक्ष्मण शिर्के
तुझ्या हातचे स्पर्श
तुझ्या हातचे स्पर्श मी आठवतो
सर्व आठवणी मनात साठवितो
नाही मिळालीस जिवनात मला
तुझी मुर्ति अजुनही डोळ्यात साठवितो
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------
अश्रुंचा लपाछपिचा खेळ
असाच नेहमी चालु असणार
कधि ते दुखात रडणार
तर कधी ते सुखात हसणार
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------
खर खोट्याच नात तस
फार जवळच असत
खर बोललेल चांगल पण
खोट बोलल तर कधीतरी फसत
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------
खरे काय आणि खोटे काय
मला काहीच कळत नाही
वकिल नक्की कुठला खरा
कोर्टात न्यायच मिळत नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------
शेवटी खर ते खरच
अस मला तरी वाटत
तरी पण खोट्याच समीकरण
या जगात खुपच नटत
___________
लक्ष्मण शिर्के
सर्व आठवणी मनात साठवितो
नाही मिळालीस जिवनात मला
तुझी मुर्ति अजुनही डोळ्यात साठवितो
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------
अश्रुंचा लपाछपिचा खेळ
असाच नेहमी चालु असणार
कधि ते दुखात रडणार
तर कधी ते सुखात हसणार
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------
खर खोट्याच नात तस
फार जवळच असत
खर बोललेल चांगल पण
खोट बोलल तर कधीतरी फसत
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------
खरे काय आणि खोटे काय
मला काहीच कळत नाही
वकिल नक्की कुठला खरा
कोर्टात न्यायच मिळत नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------
शेवटी खर ते खरच
अस मला तरी वाटत
तरी पण खोट्याच समीकरण
या जगात खुपच नटत
___________
लक्ष्मण शिर्के
प्रयत्नाच्याही पुढे जावुन
प्रयत्नाच्याही पुढे जावुन
अपार कष्ट मी करतो
पन नशिबच नसत जेव्हा
आपोआपच पुढे असुनही हरतो
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
प्रश्न नसतो हरण्या-जिंकण्याचा
मला दोन्ही सुद्धा आवडत
पन आज कालच्या अन्याय पाहुन
हतबल मन निराशेमाग दवडत
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
येशिल तरी का तु आज?
विनवितोय मी पुन्हा पुन्हा
कधी तुझ्या मनाला एकदाचा
फुटेल खरया मायेचा पान्हा
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
मनात जेव्हापासुन माझ्या
वाहु लागले प्रेम वारे
जागतोय मी रात्र रात्र
मोजतोय आकाशी तारे
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
रडत नाही मी कधी
उर फ़क्त दाटुन येतो
मनातुन आलेले अश्रु
दोन्ही नयनी वाटुन घेतो
___________
लक्ष्मण शिर्के
अपार कष्ट मी करतो
पन नशिबच नसत जेव्हा
आपोआपच पुढे असुनही हरतो
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
प्रश्न नसतो हरण्या-जिंकण्याचा
मला दोन्ही सुद्धा आवडत
पन आज कालच्या अन्याय पाहुन
हतबल मन निराशेमाग दवडत
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
येशिल तरी का तु आज?
विनवितोय मी पुन्हा पुन्हा
कधी तुझ्या मनाला एकदाचा
फुटेल खरया मायेचा पान्हा
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
मनात जेव्हापासुन माझ्या
वाहु लागले प्रेम वारे
जागतोय मी रात्र रात्र
मोजतोय आकाशी तारे
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
रडत नाही मी कधी
उर फ़क्त दाटुन येतो
मनातुन आलेले अश्रु
दोन्ही नयनी वाटुन घेतो
___________
लक्ष्मण शिर्के
यश सुदैवाने मिळते
यश सुदैवाने मिळते
असे कित्येकजण म्हणतात
काय वाटते देव जाणॆ
नक्की काय ते जाणतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------
खरच तु मला आवडतेस
पण तुला कस सांगु
मैत्रिच नात तुटल तर
पुन्हा तुझ्याकडे काय मागु?
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------
मनातले भाव व्यक्त करायला
मला कधी नाही जमत
नुसत्याच कल्पनेच्या परिघात
मन असते नेहमी रमत
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------
वाट पहात राहिलो एका पहाटेची
आलेल्या परिस्थितीला जागत राहिलो
कित्येक पहाट सरुन गेल्या
आजही वेड्यासारखाच वागत राहिलो
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------
कधी कधी नशिब सुद्धा
माझ्यावर अस रुसत
दुनियेतील वेडा समजुन
माझ्याकडे पहात बसत
___________
लक्ष्मण शिर्के
असे कित्येकजण म्हणतात
काय वाटते देव जाणॆ
नक्की काय ते जाणतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------
खरच तु मला आवडतेस
पण तुला कस सांगु
मैत्रिच नात तुटल तर
पुन्हा तुझ्याकडे काय मागु?
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------
मनातले भाव व्यक्त करायला
मला कधी नाही जमत
नुसत्याच कल्पनेच्या परिघात
मन असते नेहमी रमत
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------
वाट पहात राहिलो एका पहाटेची
आलेल्या परिस्थितीला जागत राहिलो
कित्येक पहाट सरुन गेल्या
आजही वेड्यासारखाच वागत राहिलो
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------
कधी कधी नशिब सुद्धा
माझ्यावर अस रुसत
दुनियेतील वेडा समजुन
माझ्याकडे पहात बसत
___________
लक्ष्मण शिर्के
सहकाराचा उगम होताना
सहकाराचा उगम होताना
खुप होता विश्वास
पण पांढरया डगले वाल्यांनी
गरिबाचा नेहमीच तोडला घास
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------
शब्द ओठात मुरताना
मज खुपच वाटे खंत
अजुन किती दिवस तु
राहणार अशी शांत शांत
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------
तो येईल तुला भेटायला
नक्किच तो दिवस येईल
क्षण असेल तुझा आनंदी
सर्व दुख निघुन जाईल
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------
एकदा का होईना जवळून
अपयश काय असते ते पहायचय
परिस्थितीला तोंड कस देतात
एकदाच बघुन घ्यायचय
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------
अपयश येईल अशी
कोणतीही गोष्ट करु नये
माहित असुनही उगीचच
विस्तव हातात धरु नये
___________
लक्ष्मण शिर्के
खुप होता विश्वास
पण पांढरया डगले वाल्यांनी
गरिबाचा नेहमीच तोडला घास
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------
शब्द ओठात मुरताना
मज खुपच वाटे खंत
अजुन किती दिवस तु
राहणार अशी शांत शांत
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------
तो येईल तुला भेटायला
नक्किच तो दिवस येईल
क्षण असेल तुझा आनंदी
सर्व दुख निघुन जाईल
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------
एकदा का होईना जवळून
अपयश काय असते ते पहायचय
परिस्थितीला तोंड कस देतात
एकदाच बघुन घ्यायचय
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------
अपयश येईल अशी
कोणतीही गोष्ट करु नये
माहित असुनही उगीचच
विस्तव हातात धरु नये
___________
लक्ष्मण शिर्के
प्रभुचीच गात आहे
प्रभुचीच गात आहे
मी सुद्धा महती
भोळीभाबडी आपण सर्व
प्रभुचेच सोबती
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------
एक एक दिवस सरुन
म्रुत्यु जवळ आला
अरे तु मरण्याअगोदरच मेलास
हळुच कानात सांगुन गेला
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------
क्षण तुझ्याबरोबर जगताना
उणीव कसलीच रहात नाही
प्रत्येक क्षणांचा आनंद मी
घेतल्याशिवाय पुढे पहात नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------
नाही मी मुलगा टपोरी
नाही मी साधाभोळा
मग कोण असेन बरे मी
अरे वेड्या तु आहेस खुळा
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------
ती दिसली कि मी
सगळेच काही विसरतो
सरळ वाट असुन सुद्धा
पाय नेहमी घसरतो
___________
लक्ष्मण शिर्के
मी सुद्धा महती
भोळीभाबडी आपण सर्व
प्रभुचेच सोबती
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------
एक एक दिवस सरुन
म्रुत्यु जवळ आला
अरे तु मरण्याअगोदरच मेलास
हळुच कानात सांगुन गेला
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------
क्षण तुझ्याबरोबर जगताना
उणीव कसलीच रहात नाही
प्रत्येक क्षणांचा आनंद मी
घेतल्याशिवाय पुढे पहात नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------
नाही मी मुलगा टपोरी
नाही मी साधाभोळा
मग कोण असेन बरे मी
अरे वेड्या तु आहेस खुळा
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------
ती दिसली कि मी
सगळेच काही विसरतो
सरळ वाट असुन सुद्धा
पाय नेहमी घसरतो
___________
लक्ष्मण शिर्के
नाही भावनांना दोष देत
नाही भावनांना दोष देत
पन मनाचा हळवेपणा जात नाही
या गुलाबी पसरलेल्या थंडीतही
दुनियेचा कानोसा घेत नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
नवरा म्हणता म्हणता
झाला त्याचा नवरोबा
बायकोपुढे रोजच राहतो
आज काय करु म्हनुन उभा
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
शेतकर्यांचा देश म्हटले जातय आपणास
पन आज दिली जात नाही किंमत
कांदा आणि भाकरी हेच त्याच पक्वान्
पन आजसुद्धा तो का आहे असा मरत
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
दुखामागुन सुखाचा असा
दिवस नेहमीच येतो
भाव भावना असतातच कायम
काळ नेहमी वाया जातो
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
स्वप्न म्हणे केव्हा केव्हा
तंतोतंत खरी ठरतात
सुखाचा शोध घेणार्याच्या
नेहमीच ती मनी स्मरतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
पन मनाचा हळवेपणा जात नाही
या गुलाबी पसरलेल्या थंडीतही
दुनियेचा कानोसा घेत नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
नवरा म्हणता म्हणता
झाला त्याचा नवरोबा
बायकोपुढे रोजच राहतो
आज काय करु म्हनुन उभा
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
शेतकर्यांचा देश म्हटले जातय आपणास
पन आज दिली जात नाही किंमत
कांदा आणि भाकरी हेच त्याच पक्वान्
पन आजसुद्धा तो का आहे असा मरत
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
दुखामागुन सुखाचा असा
दिवस नेहमीच येतो
भाव भावना असतातच कायम
काळ नेहमी वाया जातो
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------
स्वप्न म्हणे केव्हा केव्हा
तंतोतंत खरी ठरतात
सुखाचा शोध घेणार्याच्या
नेहमीच ती मनी स्मरतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
काही म्हण मला आता
काही म्हण मला आता
त्याचा फरक नाही पडणार
पण तुझ्याशी केलेली वेडी मैत्री
मी कधीच नाही सोडणार
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------------------
तुझ्या मिठीतील गोडवा
नेहमीच मला भावतो
जसा थंडीच्या दिवसातील गारठा
क्षणार्धात निघुन जातो
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------------------
शब्द असतात मोती हिरे
शब्द असते मन गहिरे
कधी शांत सागरी लाटा
तर कधी "तुफानी वादळ" वारे
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------------------
डोळ्यांचे ही किमया
फारच न्यारी असते
डोळे असुन आंधळे बनन्याची
चाल काहींना प्यारी असते
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------------------
विश्वासाच्या माणसाने ऐकले नाही कि
माझे मन खुप दुखावते
नुसती दाद जरी दिली त्याने
तरी मन ह्रद्यापासुन सुखावते
___________
लक्ष्मण शिर्के
त्याचा फरक नाही पडणार
पण तुझ्याशी केलेली वेडी मैत्री
मी कधीच नाही सोडणार
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------------------
तुझ्या मिठीतील गोडवा
नेहमीच मला भावतो
जसा थंडीच्या दिवसातील गारठा
क्षणार्धात निघुन जातो
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------------------
शब्द असतात मोती हिरे
शब्द असते मन गहिरे
कधी शांत सागरी लाटा
तर कधी "तुफानी वादळ" वारे
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------------------
डोळ्यांचे ही किमया
फारच न्यारी असते
डोळे असुन आंधळे बनन्याची
चाल काहींना प्यारी असते
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------------------
विश्वासाच्या माणसाने ऐकले नाही कि
माझे मन खुप दुखावते
नुसती दाद जरी दिली त्याने
तरी मन ह्रद्यापासुन सुखावते
___________
लक्ष्मण शिर्के
आठवते मज आई
आठवते मज आई
नयनी वाहते अश्रु
नाही शकत कधीच मी
तिच्या उपकारांना विसरु
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------------------------
थोर तुझे उपकार आई
जन्म दिलास मला
सांभाळ केलास तळहाताच्या फोडाप्रमाने
कस आता विसरु तुला
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------------------------
हसुन हसुन पोट दुखते
असे सगळॆच म्हनतात
तरी पन पोट धरुन खो खो
हास्य मनी का आणतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------------------------
या वेळची गुलाबी थंडी
थोडी वेगळीच आहे
मन सुखावणारा गारवा
मजा एक आगळीच आहे
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------------------------
का असंख्य प्रश्न उभे राहतात
माझ्याशी तु बोलताना
मुक का राहतेस अशी
माझ्या डोळ्यात तु पाहताना
___________
लक्ष्मण शिर्के
नयनी वाहते अश्रु
नाही शकत कधीच मी
तिच्या उपकारांना विसरु
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------------------------
थोर तुझे उपकार आई
जन्म दिलास मला
सांभाळ केलास तळहाताच्या फोडाप्रमाने
कस आता विसरु तुला
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------------------------
हसुन हसुन पोट दुखते
असे सगळॆच म्हनतात
तरी पन पोट धरुन खो खो
हास्य मनी का आणतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------------------------
या वेळची गुलाबी थंडी
थोडी वेगळीच आहे
मन सुखावणारा गारवा
मजा एक आगळीच आहे
___________
लक्ष्मण शिर्के
---------------------------------------------------------------
का असंख्य प्रश्न उभे राहतात
माझ्याशी तु बोलताना
मुक का राहतेस अशी
माझ्या डोळ्यात तु पाहताना
___________
लक्ष्मण शिर्के
त्याच फुलांचा सहवास
त्याच फुलांचा सहवास
अजुनही मज हवा होता
अर्धवट पाकळ्यांचा चक्काचुर झाला
अनुभव तेव्हा नवा होता
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------------------
जिवनच असे आहे
जसे एक उमलते फुल
पाहतो जेव्हा दुरुनी त्यास
साठुन राहते मनात भुल
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------------------
फुल कोमेजेपर्यन्त
ते माझ्या हातात होते
कळालेच नाही मला
मन कुठल्या विचारात होते
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------------------
मनाने मनाला घातली साद
खुप बरे वाटले
नाहीतरी नेहमीच्या निराशेचे प्रमाण
थोडे तरी घटले
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------------------
नेहमीच ति माझ्या
पाठीशी ठाम असायची
नाही देता आले काही तिला
तरी अश्रुन्ची साथ असायची
___________
लक्ष्मण शिर्के
अजुनही मज हवा होता
अर्धवट पाकळ्यांचा चक्काचुर झाला
अनुभव तेव्हा नवा होता
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------------------
जिवनच असे आहे
जसे एक उमलते फुल
पाहतो जेव्हा दुरुनी त्यास
साठुन राहते मनात भुल
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------------------
फुल कोमेजेपर्यन्त
ते माझ्या हातात होते
कळालेच नाही मला
मन कुठल्या विचारात होते
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------------------
मनाने मनाला घातली साद
खुप बरे वाटले
नाहीतरी नेहमीच्या निराशेचे प्रमाण
थोडे तरी घटले
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------------------
नेहमीच ति माझ्या
पाठीशी ठाम असायची
नाही देता आले काही तिला
तरी अश्रुन्ची साथ असायची
___________
लक्ष्मण शिर्के
स्वप्नातील तुझ्या आठवणी
स्वप्नातील तुझ्या आठवणी
श्वास बनुन राहत आहेत
सावली आहेत माझ्यासाठी
नयन माझे पहात आहेत
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------------------
मिटलेल्या डोळ्यान्ना मन साक्ष देते
तिच्या नाजुक ओठान्वर माझे लक्ष होते
खुप वेळा मनाला आवरत होतो
पण निर्दयी मनाचे ते एक भक्ष होते
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------------------
कितितरी वेळाला मनाला
समजविन्याचा प्रयत्न केला
प्रत्येक वेळी निष्फ़ळ होवुन
काळ आणि वेळ वाया गेला
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------------------
मन असते दिलदार
परिस्थिती घात करते
त्यातुनही कट्टर मन
तिच्यावर मात करते
___________
लक्ष्मण शिर्के
-------------------------------------------------------------
तु हसव चारोळ्यातुन मला
ते तब्येतीला पण बरे असते
क्षण हसरे गेले कि इथे
कुणीच कुणाचे रुणी नसते
___________
लक्ष्मण शिर्के
श्वास बनुन राहत आहेत
सावली आहेत माझ्यासाठी
नयन माझे पहात आहेत
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------------------
मिटलेल्या डोळ्यान्ना मन साक्ष देते
तिच्या नाजुक ओठान्वर माझे लक्ष होते
खुप वेळा मनाला आवरत होतो
पण निर्दयी मनाचे ते एक भक्ष होते
___________
लक्ष्मण शिर्के
-----------------------------------------------------------
कितितरी वेळाला मनाला
समजविन्याचा प्रयत्न केला
प्रत्येक वेळी निष्फ़ळ होवुन
काळ आणि वेळ वाया गेला
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------------------
मन असते दिलदार
परिस्थिती घात करते
त्यातुनही कट्टर मन
तिच्यावर मात करते
___________
लक्ष्मण शिर्के
-------------------------------------------------------------
तु हसव चारोळ्यातुन मला
ते तब्येतीला पण बरे असते
क्षण हसरे गेले कि इथे
कुणीच कुणाचे रुणी नसते
___________
लक्ष्मण शिर्के
अधीर् नाही होत
अधीर् नाही होत आता
मन आता नाही कुठही पळत
माहीत झालाय त्याला आता
खरे प्रेम आता जास्त नाही मिळत
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------------
दुनियाच असते खुळी
आठवणीवर जगणारी
एकमेकान्ना साद देवुन
सुख दुख मागणारी
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------------
आता त्या आठवणीन्ची जागा
नाही घेवु शकत कुणी
त्याच त्याच जखमा खोदणे
सहन होत नाही मनी
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------------
जिवनात आलेली प्रत्येक वेदना
मि खुल्या मनाने सहन केली
पन त्या एकाच आठवणीने
माझी पापणी ओली केली
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------------
हिम्मत मला देत आहेस
अशीच साथ शेवट्पर्यन्त ठेव
शब्दान्चा फक्त आधार दे
हीच अपेक्षा असेल एकमेव
___________
लक्ष्मण शिर्के
मन आता नाही कुठही पळत
माहीत झालाय त्याला आता
खरे प्रेम आता जास्त नाही मिळत
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------------
दुनियाच असते खुळी
आठवणीवर जगणारी
एकमेकान्ना साद देवुन
सुख दुख मागणारी
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------------
आता त्या आठवणीन्ची जागा
नाही घेवु शकत कुणी
त्याच त्याच जखमा खोदणे
सहन होत नाही मनी
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------------
जिवनात आलेली प्रत्येक वेदना
मि खुल्या मनाने सहन केली
पन त्या एकाच आठवणीने
माझी पापणी ओली केली
___________
लक्ष्मण शिर्के
----------------------------------------------------
हिम्मत मला देत आहेस
अशीच साथ शेवट्पर्यन्त ठेव
शब्दान्चा फक्त आधार दे
हीच अपेक्षा असेल एकमेव
___________
लक्ष्मण शिर्के
अधीर् नाही होत
अधीर् नाही होत आता
मन आता नाही कुठही पळत
माहीत झालाय त्याला आता
खरे प्रेम आता जास्त नाही मिळत
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------------
दुनियाच असते खुळी
आठवणीवर जगणारी
एकमेकान्ना साद देवुन
सुख दुख मागणारी
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------------
आता त्या आठवणीन्ची जागा
नाही घेवु शकत कुणी
त्याच त्याच जखमा खोदणे
सहन होत नाही मनी
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------------
जिवनात आलेली प्रत्येक वेदना
मि खुल्या मनाने सहन केली
पन त्या एकाच आठवणीने
माझी पापणी ओली केली
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------------
हिम्मत मला देत आहेस
अशीच साथ शेवट्पर्यन्त ठेव
शब्दान्चा फक्त आधार दे
हीच अपेक्षा असेल एकमेव
___________
लक्ष्मण शिर्के
मन आता नाही कुठही पळत
माहीत झालाय त्याला आता
खरे प्रेम आता जास्त नाही मिळत
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------------
दुनियाच असते खुळी
आठवणीवर जगणारी
एकमेकान्ना साद देवुन
सुख दुख मागणारी
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------------
आता त्या आठवणीन्ची जागा
नाही घेवु शकत कुणी
त्याच त्याच जखमा खोदणे
सहन होत नाही मनी
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------------
जिवनात आलेली प्रत्येक वेदना
मि खुल्या मनाने सहन केली
पन त्या एकाच आठवणीने
माझी पापणी ओली केली
___________
लक्ष्मण शिर्के
------------------------------------------------------
हिम्मत मला देत आहेस
अशीच साथ शेवट्पर्यन्त ठेव
शब्दान्चा फक्त आधार दे
हीच अपेक्षा असेल एकमेव
___________
लक्ष्मण शिर्के
या जगात सर्वांनाच
या जगात सर्वांनाच प्रेमाचे
वेगवेगळे अनुभव येत असतात
तरिपन वेड्यासारखे स्वताचेच मन
दुसर्याना का सांगत बसतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------------------
भाळु नकोस इतका
तिच्या वरवरच्या मोहकतेला
जबाबदार तूच असशिल मग
तुझ्या मनावरील दाहकतेला
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------------------
दुख मनात लपवितो
पण भावना लपत नाहीत
अपेक्षा असतात सुखाच्या
पण क्षणच जपत नाहीत
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------------------
संधी म्हणजे काय असते
ठाऊक आहे मला
मी तुझ्या बरोबरीतच असेन
तुझच वचन दे मला
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------------------
वचनांनाच आहे आता धरून
खूप मित्र आतापर्यंत झाले
एकिकडुनच प्रयत्न माझा झाला
नवीन मिळताच जुन्याला सर्व सोडून गेले
___________
लक्ष्मण शिर्के
वेगवेगळे अनुभव येत असतात
तरिपन वेड्यासारखे स्वताचेच मन
दुसर्याना का सांगत बसतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------------------
भाळु नकोस इतका
तिच्या वरवरच्या मोहकतेला
जबाबदार तूच असशिल मग
तुझ्या मनावरील दाहकतेला
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------------------
दुख मनात लपवितो
पण भावना लपत नाहीत
अपेक्षा असतात सुखाच्या
पण क्षणच जपत नाहीत
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------------------
संधी म्हणजे काय असते
ठाऊक आहे मला
मी तुझ्या बरोबरीतच असेन
तुझच वचन दे मला
___________
लक्ष्मण शिर्के
--------------------------------------------------------
वचनांनाच आहे आता धरून
खूप मित्र आतापर्यंत झाले
एकिकडुनच प्रयत्न माझा झाला
नवीन मिळताच जुन्याला सर्व सोडून गेले
___________
लक्ष्मण शिर्के
नकोस अश्रूंना बोलावू
नकोस अश्रूंना बोलावू
अधिक रडवतिल तुला
अश्रुन्वाटे सुजलेल्या डोळ्यांचा
चांगला अनुभव आहे मला
___________
लक्ष्मण शिर्के
अधिक रडवतिल तुला
अश्रुन्वाटे सुजलेल्या डोळ्यांचा
चांगला अनुभव आहे मला
___________
लक्ष्मण शिर्के
तिच्या अश्रूंशी आहे गाठ
मनाच्या वेदना कमी करायला
अश्रूंना दिली मी वाट
अश्रुच नकळत बोलले माझ्याशी
आवर नाहीतर तिच्या अश्रूंशी आहे गाठ
___________
लक्ष्मण शिर्के
अश्रूंना दिली मी वाट
अश्रुच नकळत बोलले माझ्याशी
आवर नाहीतर तिच्या अश्रूंशी आहे गाठ
___________
लक्ष्मण शिर्के
तू गेल्यावर पण मला
तू गेल्यावर पण मला
का तुझी आठवण यावी
जशी उसळत्या समुद्रात
तुफान लाट सळसळत जावी
___________
लक्ष्मण शिर्के
का तुझी आठवण यावी
जशी उसळत्या समुद्रात
तुफान लाट सळसळत जावी
___________
लक्ष्मण शिर्के
वेळ कधीच येणार नाही
तू मला सोडून जाशील
ही वेळ कधीच येणार नाही
आलीच जरी चुकुन जीवनात
पुढील जीवन मज पेलणार नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
ही वेळ कधीच येणार नाही
आलीच जरी चुकुन जीवनात
पुढील जीवन मज पेलणार नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
तेच होते खूप बरे
अनोळखी होतो आपण दोघे
तेच होते खूप बरे
तू नाहीस अखेरपर्यंत साथ देणार
हे वाटत होते खरे
___________
लक्ष्मण शिर्के
तेच होते खूप बरे
तू नाहीस अखेरपर्यंत साथ देणार
हे वाटत होते खरे
___________
लक्ष्मण शिर्के
त्या पिल्लाच्या आईला
किती असेल माया
किती असेल छाया
त्या पिल्लाच्या आईला
त्यांच्यासाठी लागते फिराया
___________
लक्ष्मण शिर्के
किती असेल छाया
त्या पिल्लाच्या आईला
त्यांच्यासाठी लागते फिराया
___________
लक्ष्मण शिर्के
दुबळेपनात राहणारी माणसे
तस पहायला गेल तर
सर्वांची मत भिन्न असतात
पण दुबळेपनात राहणारी माणसे
जेव्हा पहावे खिन्न असतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
सर्वांची मत भिन्न असतात
पण दुबळेपनात राहणारी माणसे
जेव्हा पहावे खिन्न असतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
जेव्हा वेळ येते तेव्हा
जेव्हा वेळ येते तेव्हा
काळही आपणास थांबत नाही
यमाचा दूत हजरच असतो
अंत आपला लांबत नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
काळही आपणास थांबत नाही
यमाचा दूत हजरच असतो
अंत आपला लांबत नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
सगळे काही मातीमोल
सगळे काही मातीमोल असते
देह सुद्धा आपला सुटत नाही
आपणच असतो आपल्या जीवनाचे सोबती
जीव जडलेल्या नात्यांचे प्रेम घटत नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
देह सुद्धा आपला सुटत नाही
आपणच असतो आपल्या जीवनाचे सोबती
जीव जडलेल्या नात्यांचे प्रेम घटत नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
संस्कृती बेचिराख करण्याचा
तोडकी मोडकी कपडे घालण्याचा
जमाना नवा आलाय
संस्कृती बेचिराख करण्याचा
दंभ नवा माजलाय
___________
लक्ष्मण शिर्के
जमाना नवा आलाय
संस्कृती बेचिराख करण्याचा
दंभ नवा माजलाय
___________
लक्ष्मण शिर्के
देवाचही नाव घेत नाही
जीवन एकदम गतिमान झालय
थांबायलाही वेळ नाही
हल्ली तर सकाळी सकाळी
देवाचही नाव घेत नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
थांबायलाही वेळ नाही
हल्ली तर सकाळी सकाळी
देवाचही नाव घेत नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
कळी न उमलताच
कळी न उमलताच
जेव्हा ती सुकते
छोटेसे जीवन जगायला
पुन्हा एकदा मुकते
___________
लक्ष्मण शिर्के
जेव्हा ती सुकते
छोटेसे जीवन जगायला
पुन्हा एकदा मुकते
___________
लक्ष्मण शिर्के
आता मला समजले
आता मला समजले नक्की
का असते नेहमी तुझ्याकडे फूल
कॉलेज च्या मधल्या तासातूनच
का देतोस आम्हास हुल
___________
लक्ष्मण शिर्के
का असते नेहमी तुझ्याकडे फूल
कॉलेज च्या मधल्या तासातूनच
का देतोस आम्हास हुल
___________
लक्ष्मण शिर्के
का छळतात तुला अश्रू
का छळतात तुला अश्रू
का भावनेशी खेळतात
मनात आलेले विचार पुन्हा
अश्रूंनाच येऊन का मिळतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
का भावनेशी खेळतात
मनात आलेले विचार पुन्हा
अश्रूंनाच येऊन का मिळतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
ओघळत्या अश्रूंना
तुझ्या त्या ओघळत्या अश्रूंना
आत्ताच घाल मनातून आवर
नंतर उगीच तुला छळुन
होत नाही तुला त्यापासून सावर
___________
लक्ष्मण शिर्के
आत्ताच घाल मनातून आवर
नंतर उगीच तुला छळुन
होत नाही तुला त्यापासून सावर
___________
लक्ष्मण शिर्के
खोट्या मैत्रीचा पाईक
विसरतोय मी यासाठी की
विश्वासात कधी कधी मी फसतो
विनाकारण मैत्रीस पात्र होऊन
खोट्या मैत्रीचा पाईक होऊन बसतो
___________
लक्ष्मण शिर्के
विश्वासात कधी कधी मी फसतो
विनाकारण मैत्रीस पात्र होऊन
खोट्या मैत्रीचा पाईक होऊन बसतो
___________
लक्ष्मण शिर्के
विश्वास आहे मला
विश्वास आहे मला
श्वास आहे तुझी मैत्री
खरच का ग टिकेल शेवटपर्यंत
बोलतेस जरी करून खात्री
___________
लक्ष्मण शिर्के
श्वास आहे तुझी मैत्री
खरच का ग टिकेल शेवटपर्यंत
बोलतेस जरी करून खात्री
___________
लक्ष्मण शिर्के
गंध हा प्रेमाचा
गंध हा प्रेमाचा तुझ्या
वसंतात या फुलू दे
बहरलेल्या या वृक्षवेलीवर
तुझे मधुर प्रेम झुलु दे
___________
लक्ष्मण शिर्के
वसंतात या फुलू दे
बहरलेल्या या वृक्षवेलीवर
तुझे मधुर प्रेम झुलु दे
___________
लक्ष्मण शिर्के
तीच मैत्री आपुली
तीच मैत्री आपुली सदा
टिकवून तू ठेव
नाते एवढे एकच असे
सर्व नात्यात पुढे एकमेव
___________
लक्ष्मण शिर्के
टिकवून तू ठेव
नाते एवढे एकच असे
सर्व नात्यात पुढे एकमेव
___________
लक्ष्मण शिर्के
मन भरून भावना दाटतात
अशाच सुन्या सुन्या वाटेवर
नवीन मित्र भेटतात
किती गोडवा असतो अशा मित्रान्त
मन भरून भावना दाटतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
नवीन मित्र भेटतात
किती गोडवा असतो अशा मित्रान्त
मन भरून भावना दाटतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
कविता तर करायचीय मला (कविता)
कवितेला विषय काय घेवु... कशावर करु...
प्रेम, स्वप्न, शब्द, दिशा, विरह, मन...... आणखी कशावर....
मनात असंख्य कल्लोळ उठताहेत...
कविता तर करायचीय मला.. कशावर करु...
प्रेम... कोरया कागदावर खरकटायचे काहीतरी
त्यातुन काय निष्पण्ण होणार..
त्याचा गंधच लोपुन गेलाय..
काय आता त्यापासुन साकार होणार...
मनात असंख्य कल्लोळ उठतायेत ...
कविता तर करायचीय मला.. कशावर करु...?
स्वप्न... पुर्वी स्वप्नांना उधान यायच...
समुद्राला येते तशी भरती यायची...
पण आता ओहोटीनंतर लवलेशही नाही...
पुन्हा स्वप्नांची दुनिया कधि फुलायची....
मनात असंख्य कल्लोळ उठतायेत...
कविता तर करायचीय मला.. कशावर करु...?
शब्द... शब्द शब्दांच्या कितीतरी चकमकी झाल्या
मोसमाप्रमाणॆ शब्द माझे फुलायचे
आता शब्दच वाटतात कित्येकदा परके
जरी ईच्छा असली शब्दांशी झुलायचे....
मनात तर असंख्य कल्लोळ उठतायेत...
कविता तर करायचीय मला.. कशावर करु...?
दिशा... कुठल्याही कामाची अन जीवनाची दिशा
आतापर्यंत विचाराने योग्यच ठरली जाणार
आता वाटच सापडत नाही यशस्वीतेची
बहुतेक ठरविलेली ध्येये अपुरीच राहणार...
मनात तर असंख्य कल्लोळ उठतायेत...
कविता तर करायचीय मला.. कशावर करु...?
विरह... विरह हा नेहमीच चांगला असतो म्हणे
सदासर्वदा मी ऐकत आलो आहे...
अनुभव घ्यायला नेहमीच मी उत्साही
कोण जाणे नशिबात काय लिहिले आहे...
मनात तर असंख्य कल्लोळ उठतायेत...
कविता तर करायचीय मला.. कशावर करु...?
मन... अशी गोष्ट की नेहमीच मला फसविते
अजुनही मनामनात होतोय नेहमी संघर्ष
वाट पाहतोय ते कधी घेतय....
उज्ज्वल सुखाचा परामर्श.......................
मनात तर असंख्य कल्लोळ उठतायेत...
कविता तर करायचीय मला.. कशावर करु...?
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लक्ष्मण शिर्के
प्रेम, स्वप्न, शब्द, दिशा, विरह, मन...... आणखी कशावर....
मनात असंख्य कल्लोळ उठताहेत...
कविता तर करायचीय मला.. कशावर करु...
प्रेम... कोरया कागदावर खरकटायचे काहीतरी
त्यातुन काय निष्पण्ण होणार..
त्याचा गंधच लोपुन गेलाय..
काय आता त्यापासुन साकार होणार...
मनात असंख्य कल्लोळ उठतायेत ...
कविता तर करायचीय मला.. कशावर करु...?
स्वप्न... पुर्वी स्वप्नांना उधान यायच...
समुद्राला येते तशी भरती यायची...
पण आता ओहोटीनंतर लवलेशही नाही...
पुन्हा स्वप्नांची दुनिया कधि फुलायची....
मनात असंख्य कल्लोळ उठतायेत...
कविता तर करायचीय मला.. कशावर करु...?
शब्द... शब्द शब्दांच्या कितीतरी चकमकी झाल्या
मोसमाप्रमाणॆ शब्द माझे फुलायचे
आता शब्दच वाटतात कित्येकदा परके
जरी ईच्छा असली शब्दांशी झुलायचे....
मनात तर असंख्य कल्लोळ उठतायेत...
कविता तर करायचीय मला.. कशावर करु...?
दिशा... कुठल्याही कामाची अन जीवनाची दिशा
आतापर्यंत विचाराने योग्यच ठरली जाणार
आता वाटच सापडत नाही यशस्वीतेची
बहुतेक ठरविलेली ध्येये अपुरीच राहणार...
मनात तर असंख्य कल्लोळ उठतायेत...
कविता तर करायचीय मला.. कशावर करु...?
विरह... विरह हा नेहमीच चांगला असतो म्हणे
सदासर्वदा मी ऐकत आलो आहे...
अनुभव घ्यायला नेहमीच मी उत्साही
कोण जाणे नशिबात काय लिहिले आहे...
मनात तर असंख्य कल्लोळ उठतायेत...
कविता तर करायचीय मला.. कशावर करु...?
मन... अशी गोष्ट की नेहमीच मला फसविते
अजुनही मनामनात होतोय नेहमी संघर्ष
वाट पाहतोय ते कधी घेतय....
उज्ज्वल सुखाचा परामर्श.......................
मनात तर असंख्य कल्लोळ उठतायेत...
कविता तर करायचीय मला.. कशावर करु...?
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लक्ष्मण शिर्के
तु तर अफलातुन लिहितेस (कविता)
तु तर अफलातुन लिहितेस
मला जास्त येत नाही
शब्दांशी फ़क्त शब्दास बांधतो
चित्त दुसरीकडे जात नाही
कविता लिहायला सुरुवात केली
अन तुझे शब्द आठवु लागले
स्वताचे शब्द नाहीत म्हणत
मनात गोंधळ साठवु लागले
लिहायचे म्हटले की नेहमीच मी
दुसरयावर विसंबुन असतो
आवडेल की नाही विचार करत
शब्द शब्द बदलत असतो
कविता तयार झाली की
नजर एकदाच फिरवितो
ओनलाईन कविता टाकण्यास
अधाशी मनाने धावतो
तु म्हणतेस लगेच मला
खुप उत्तम लिहितोस अलिकडे
आता मात्र प्रयत्न करणार
लिहायचा मी पलिकडे
छान झाली आहे म्हणुन
मागे उभी राहतेस
पण अस काही नाही ग
तु तर अफलातुन लिहितेस
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लक्ष्मण शिर्के
मला जास्त येत नाही
शब्दांशी फ़क्त शब्दास बांधतो
चित्त दुसरीकडे जात नाही
कविता लिहायला सुरुवात केली
अन तुझे शब्द आठवु लागले
स्वताचे शब्द नाहीत म्हणत
मनात गोंधळ साठवु लागले
लिहायचे म्हटले की नेहमीच मी
दुसरयावर विसंबुन असतो
आवडेल की नाही विचार करत
शब्द शब्द बदलत असतो
कविता तयार झाली की
नजर एकदाच फिरवितो
ओनलाईन कविता टाकण्यास
अधाशी मनाने धावतो
तु म्हणतेस लगेच मला
खुप उत्तम लिहितोस अलिकडे
आता मात्र प्रयत्न करणार
लिहायचा मी पलिकडे
छान झाली आहे म्हणुन
मागे उभी राहतेस
पण अस काही नाही ग
तु तर अफलातुन लिहितेस
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लक्ष्मण शिर्के
1.27.2010
मी बिनकामी (कविता)
रोज खातुय टोमणे पण
सुधरायचे नाव न्हाय
काम तर नकुच म्हणतुय
नुसता आडोशाला बसुन हाय
पिंपळाखालच्या पारावर
जमतो रोजचा कट्टा
बिडी सिगारेट ओढुन झाल्यावर
बसतो खेळायला सट्टा
पाहता पाहता खिशाला
पडते जेव्हा कोरड
बेईज्ज्त होवुन माझी
घरचे पण करतात ओरड
इलेक्शनच्या धामधुमीत
पुढारयांच्या मागं पळतो
ढाब्यावरचा मटन रस्सा
पायजे यवढा मिळतो
शिकायच्या तर नावानं बोंब
खातो रोज बापाचा मार
दगड झालया शरीर सगळं
मारुन काय व्हणार साकार
गावकरी पण वैतागलं
पोरगं सुधरणार न्हाय
काम तर नकुच म्हणतुय
नुसताच आडोशाला बसुन हाय
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लक्ष्मण शिर्के
सुधरायचे नाव न्हाय
काम तर नकुच म्हणतुय
नुसता आडोशाला बसुन हाय
पिंपळाखालच्या पारावर
जमतो रोजचा कट्टा
बिडी सिगारेट ओढुन झाल्यावर
बसतो खेळायला सट्टा
पाहता पाहता खिशाला
पडते जेव्हा कोरड
बेईज्ज्त होवुन माझी
घरचे पण करतात ओरड
इलेक्शनच्या धामधुमीत
पुढारयांच्या मागं पळतो
ढाब्यावरचा मटन रस्सा
पायजे यवढा मिळतो
शिकायच्या तर नावानं बोंब
खातो रोज बापाचा मार
दगड झालया शरीर सगळं
मारुन काय व्हणार साकार
गावकरी पण वैतागलं
पोरगं सुधरणार न्हाय
काम तर नकुच म्हणतुय
नुसताच आडोशाला बसुन हाय
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लक्ष्मण शिर्के
1.26.2010
अरे मुलगा कुणाचा होता (कविता)
फोनची घंटा वाजली
आबासाहेबांनी फोन उचलला.... नमस्कार आबासाहेब बोलतोय..
ओके.. हो हो .. सांगतो. आबासाहेबांचा कंप पावनारा स्वर
रिसिव्हर खाली ठेवत प्रभाकरला बोलत होते
तुला आता जावेच लागेल म्हणुन पोराला सांगत होते
सिमायुद्ध भडकल होत दोनच दिवस झाल होत रजेवर येवुन
त्याला खात्री होतीच तो घरात सांगत पण होता
नुकतच सहा महिने उलटले होते शुभमंगल होवुन
देशापुढे घरातल्यांची तो दखलच घेत नव्हता
माहित नव्हत त्यालापण ही आपली अखेरची भेट होणार
चेहरयावर खुललेल शेवटच हास्य कर्तेसवरते आनंदाने पाहणार
पत्नीचाही अभिमान क्षणोक्षणी व्रुद्धिंगत होत असे
तीलासुद्धा माहित नव्हत की आपल कुंकु देशसेवेतच आहुती देणार
आवराआवर करत असतानाच सर्वांची नजर दुरदर्शन वर खिळली
पाकिस्तानच्या बाजूने गोळीबार सुरु झाल्यानंतर लष्करी दलांना सज्ज ठेवण्यात आल्याचे सूत्रांनी सांगितले
सीमेवर तैनात भारतीय लष्करी जवानांना सतर्क राहण्याचा इशारा देण्यात आला
आणि हा भारतीय जवान सर्व कुटुंबियांना अलिंगन देवुन कामगिरीवर निघाला
जीवावर उदार होवुन डोळ्यात तेल घालुन जवान लढत होते
क्षण अन क्षण देशासाठी अथक प्रयत्न करत होते
"भारत माता की जय" "जय हिंद" परिसर निनादुन जात होता
प्रत्येक भारतीय युद्धाच्या बातम्या पहात आणि ऐकत होता
आणि अखेर तो सोनियाचा दिवस उजाडला
"भारतानं युद्ध जिंकल" देशाचा तिरंगा सिमेवर फडकला
रक्त सांडल त्या भारतीय जवानांनी देशासाठी
देशवासियांना आनंदाच उधान शत्रुपक्षाचा विजय रोखला
फोन खणखणला... नमस्कार आबासाहेब बोलतोय.. काय....?
थरथरत्या हातातुन रिसीव्हर सुटला काही सेकंद दुखाश्रु नयनी ओघळले
सारे कुटुंबीय अधीरतेने ऐकता ऐकता अवाक झाले
क्षणात पुन्हा रिसीव्हर कानाला लावला... हाताची मुठ आवळली आणि गरजले.......
अरे मुलगा कुणाचा होता................?
_______________
लक्ष्मण शिर्के
आबासाहेबांनी फोन उचलला.... नमस्कार आबासाहेब बोलतोय..
ओके.. हो हो .. सांगतो. आबासाहेबांचा कंप पावनारा स्वर
रिसिव्हर खाली ठेवत प्रभाकरला बोलत होते
तुला आता जावेच लागेल म्हणुन पोराला सांगत होते
सिमायुद्ध भडकल होत दोनच दिवस झाल होत रजेवर येवुन
त्याला खात्री होतीच तो घरात सांगत पण होता
नुकतच सहा महिने उलटले होते शुभमंगल होवुन
देशापुढे घरातल्यांची तो दखलच घेत नव्हता
माहित नव्हत त्यालापण ही आपली अखेरची भेट होणार
चेहरयावर खुललेल शेवटच हास्य कर्तेसवरते आनंदाने पाहणार
पत्नीचाही अभिमान क्षणोक्षणी व्रुद्धिंगत होत असे
तीलासुद्धा माहित नव्हत की आपल कुंकु देशसेवेतच आहुती देणार
आवराआवर करत असतानाच सर्वांची नजर दुरदर्शन वर खिळली
पाकिस्तानच्या बाजूने गोळीबार सुरु झाल्यानंतर लष्करी दलांना सज्ज ठेवण्यात आल्याचे सूत्रांनी सांगितले
सीमेवर तैनात भारतीय लष्करी जवानांना सतर्क राहण्याचा इशारा देण्यात आला
आणि हा भारतीय जवान सर्व कुटुंबियांना अलिंगन देवुन कामगिरीवर निघाला
जीवावर उदार होवुन डोळ्यात तेल घालुन जवान लढत होते
क्षण अन क्षण देशासाठी अथक प्रयत्न करत होते
"भारत माता की जय" "जय हिंद" परिसर निनादुन जात होता
प्रत्येक भारतीय युद्धाच्या बातम्या पहात आणि ऐकत होता
आणि अखेर तो सोनियाचा दिवस उजाडला
"भारतानं युद्ध जिंकल" देशाचा तिरंगा सिमेवर फडकला
रक्त सांडल त्या भारतीय जवानांनी देशासाठी
देशवासियांना आनंदाच उधान शत्रुपक्षाचा विजय रोखला
फोन खणखणला... नमस्कार आबासाहेब बोलतोय.. काय....?
थरथरत्या हातातुन रिसीव्हर सुटला काही सेकंद दुखाश्रु नयनी ओघळले
सारे कुटुंबीय अधीरतेने ऐकता ऐकता अवाक झाले
क्षणात पुन्हा रिसीव्हर कानाला लावला... हाताची मुठ आवळली आणि गरजले.......
अरे मुलगा कुणाचा होता................?
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लक्ष्मण शिर्के
1.25.2010
सांगशील तरी.... (कविता)
कुठे चाललीस? का? माझ काय चुकलं?
सांगशील तरी काय द्यायच माझ्याकडुन चुकलं?
प्रेम, आपुलकी, जिव्हाळा, मायेचा हात
काय हव होत तुला
वेळोवेळी सर्वच देत होतो
का सांगत नाहिस मला.........
तरिपन एकदा सांग माझ प्रेम कशात मुकलं
सांगशील तरी काय द्यायच माझ्याकडुन चुकलं?
तु पहिल्याच भेटीत बोलली होतीस
मला कधीच सोडु नको
फक्त एकच मनापासुन मागणी केलीस
विश्वास कधीच तोडु नको
त्यावेळीच माझ मन तुझ्या ह्रदयाशी पुर्णता झुकलं
सांगशील तरी काय द्यायच माझ्याकडुन चुकलं?
रास ही जीवनाची तुझ्याबरोबर
आतापर्यंत रचत राहिलो
तुझ्या मनातले बोल अन सुर
नेहमी प्रमाणे वाचत राहिलो
माझ मन तुझ्या मनात अजुनही का नाही टिकलं
सांगशील तरी काय द्यायच माझ्याकडुन चुकलं?
तुझ्या प्रत्येक शब्दाला मी
वेड्यासारखा जागत होतो
तु पन मनापासुन प्रेम करायचीस
क्षणोक्षणी तुला प्रेम मागत होतो
देव जाणे आजच तुझ्या मनाने काय आखलं
सांगशील तरी काय द्यायच माझ्याकडुन चुकलं?
वाट पाहत होतो त्या दिवसाची
आईबाबांना आनंदान हसताना पाहायच होत
आपण दोघांनी उत्साहात मिळुन जोडीने
त्यांच्यापुढे आशिर्वादासाठी उभ राहायच होत
त्या विचारांच्या कळीच स्वप्न उमलण्याअगोदरच सुकलं
सांगशील तरी काय द्यायच माझ्याकडुन चुकलं?
________________
लक्ष्मण शिर्के
सांगशील तरी काय द्यायच माझ्याकडुन चुकलं?
प्रेम, आपुलकी, जिव्हाळा, मायेचा हात
काय हव होत तुला
वेळोवेळी सर्वच देत होतो
का सांगत नाहिस मला.........
तरिपन एकदा सांग माझ प्रेम कशात मुकलं
सांगशील तरी काय द्यायच माझ्याकडुन चुकलं?
तु पहिल्याच भेटीत बोलली होतीस
मला कधीच सोडु नको
फक्त एकच मनापासुन मागणी केलीस
विश्वास कधीच तोडु नको
त्यावेळीच माझ मन तुझ्या ह्रदयाशी पुर्णता झुकलं
सांगशील तरी काय द्यायच माझ्याकडुन चुकलं?
रास ही जीवनाची तुझ्याबरोबर
आतापर्यंत रचत राहिलो
तुझ्या मनातले बोल अन सुर
नेहमी प्रमाणे वाचत राहिलो
माझ मन तुझ्या मनात अजुनही का नाही टिकलं
सांगशील तरी काय द्यायच माझ्याकडुन चुकलं?
तुझ्या प्रत्येक शब्दाला मी
वेड्यासारखा जागत होतो
तु पन मनापासुन प्रेम करायचीस
क्षणोक्षणी तुला प्रेम मागत होतो
देव जाणे आजच तुझ्या मनाने काय आखलं
सांगशील तरी काय द्यायच माझ्याकडुन चुकलं?
वाट पाहत होतो त्या दिवसाची
आईबाबांना आनंदान हसताना पाहायच होत
आपण दोघांनी उत्साहात मिळुन जोडीने
त्यांच्यापुढे आशिर्वादासाठी उभ राहायच होत
त्या विचारांच्या कळीच स्वप्न उमलण्याअगोदरच सुकलं
सांगशील तरी काय द्यायच माझ्याकडुन चुकलं?
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लक्ष्मण शिर्के
मैत्री तोडु नकोस (कविता)
दुर असताना खुप काहीस बोलायच सुचत
जवळ आल्यावर डोळ्यात पाणी साचत
मन विषन्न होत काय बोलाव तेच कळत नाही
तु जवळ असताना जीभच वळत नाही
किती तरी वेळा बोलाव बोलाव म्हणतो
धैर्य याव म्हणुन पुन्हा पुन्हा गुणगुणतो
कातरवेळी भेटल्यावर जेव्हा नजरेत पाहतो
आखुन ठेवलेले शब्दच मी विसरुन जातो
मी तुझ्यावर प्रेम करतो तुला तरी कळु दे
शब्दांची अपुर्ण वाट तुझ्याकडुन तरी मिळु दे
खुप वेळा म्हणतेस "एव्हरीथिंग इज पोसिबल"
जिवनातली ठरविलेली ध्येये तुझ्यासवे मिळु दे
प्रेम करतोय तुझ्यावर राग मानु नकोस
काही नसले मनात तर आग ओकु नकोस
समजुन घे मला भेटायच सोडु नकोस
काही असो तुझ्या मनात पण मैत्री तोडु नकोस
____________
लक्ष्मण शिर्के
जवळ आल्यावर डोळ्यात पाणी साचत
मन विषन्न होत काय बोलाव तेच कळत नाही
तु जवळ असताना जीभच वळत नाही
किती तरी वेळा बोलाव बोलाव म्हणतो
धैर्य याव म्हणुन पुन्हा पुन्हा गुणगुणतो
कातरवेळी भेटल्यावर जेव्हा नजरेत पाहतो
आखुन ठेवलेले शब्दच मी विसरुन जातो
मी तुझ्यावर प्रेम करतो तुला तरी कळु दे
शब्दांची अपुर्ण वाट तुझ्याकडुन तरी मिळु दे
खुप वेळा म्हणतेस "एव्हरीथिंग इज पोसिबल"
जिवनातली ठरविलेली ध्येये तुझ्यासवे मिळु दे
प्रेम करतोय तुझ्यावर राग मानु नकोस
काही नसले मनात तर आग ओकु नकोस
समजुन घे मला भेटायच सोडु नकोस
काही असो तुझ्या मनात पण मैत्री तोडु नकोस
____________
लक्ष्मण शिर्के
1.21.2010
आय टी (कविता)
नावाला फ़क्त असत आय टी
पण वैताग येतो या जीवनाचा
काम पण करणे ठिक पण
डेटा एण्ट्री पासुन ते टेक्निशिअन पर्यंतची कामे सर्व
हे झाले कि ते, ते नाही झाले की हे नेहमीचेच पर्व
दररोजचेच नवनवीन प्रश्न नवनवीन अडचणी
बातम्या पण येतात चटपटीत हल्ली कानी
समजतच नसत कधी कंपनीची काय असते पोलिसी
घरी आई बा ला पण माहित नसते आय टी म्हणजे काय
फ़्याशनेबल नाव वाटत म्हणे असे ऐटीत असते काय
बोस च नेहमी एकच नेहमीच सांगण
काम न करता फ़ळाची अपेक्षा करत राहण
अरे पण फ़ळ कधी दात हलायला लागल्यावर मिळंणार का
टार्गेट पार करता करता डोक्याचा होतो भुगा
नशिब दात विचकुन म्हणत असेच शेवटपर्यंत जगा
किती लेट नाईट्स मारायच्या किती ओटी करायची
तरी पन अप्राइजल च्या नावाने यंदाही निराशाच चाखायची
हाती काही न आलेल पाहुन मनसोक्त हसायच
शनिवार रविवार वीकेण्ड करताना डोक्यात एकच जप
सोमवार पासुन शुक्रवार पर्यंत नुसता असणार ताप
कधी कधी कसतरी वाटल की ओफ़िसच्या पायरयावर बसतो
आयुष्य इथच घालवायचय म्हणत माझ्यावरच मी रुसतो
कितीही विचार केला तरी पोटासाठी कमवायचय
आशावादाने जगतोय सारखा सारखा कधीतरी नवल घडेल
प्रामाणिकपणे केलेल काम कधीतरी पथ्यावर पडेल
___________
लक्ष्मण शिर्के
पण वैताग येतो या जीवनाचा
काम पण करणे ठिक पण
डेटा एण्ट्री पासुन ते टेक्निशिअन पर्यंतची कामे सर्व
हे झाले कि ते, ते नाही झाले की हे नेहमीचेच पर्व
दररोजचेच नवनवीन प्रश्न नवनवीन अडचणी
बातम्या पण येतात चटपटीत हल्ली कानी
समजतच नसत कधी कंपनीची काय असते पोलिसी
घरी आई बा ला पण माहित नसते आय टी म्हणजे काय
फ़्याशनेबल नाव वाटत म्हणे असे ऐटीत असते काय
बोस च नेहमी एकच नेहमीच सांगण
काम न करता फ़ळाची अपेक्षा करत राहण
अरे पण फ़ळ कधी दात हलायला लागल्यावर मिळंणार का
टार्गेट पार करता करता डोक्याचा होतो भुगा
नशिब दात विचकुन म्हणत असेच शेवटपर्यंत जगा
किती लेट नाईट्स मारायच्या किती ओटी करायची
तरी पन अप्राइजल च्या नावाने यंदाही निराशाच चाखायची
हाती काही न आलेल पाहुन मनसोक्त हसायच
शनिवार रविवार वीकेण्ड करताना डोक्यात एकच जप
सोमवार पासुन शुक्रवार पर्यंत नुसता असणार ताप
कधी कधी कसतरी वाटल की ओफ़िसच्या पायरयावर बसतो
आयुष्य इथच घालवायचय म्हणत माझ्यावरच मी रुसतो
कितीही विचार केला तरी पोटासाठी कमवायचय
आशावादाने जगतोय सारखा सारखा कधीतरी नवल घडेल
प्रामाणिकपणे केलेल काम कधीतरी पथ्यावर पडेल
___________
लक्ष्मण शिर्के
मकर संक्रांत ( kavita )
मकर संक्रांत म्हटले की सुट्टीचा दिवस
आम्हा मुलांची मज्जा असायची
भरपुर खेळायला बागडायला मिळणार
नेहमीच आमची शिवापाणी चालायची
गावच्या वरती टेकडीवर जायला
सर्व मुले एकदम पळायची
सकाळपासुन संध्याकाळपर्यंत
तहानभुक विसरुन पतंग खेळायची
कधी कधी थट्टामस्करी
हळु हळु भांडणावर जायची
एकमेकाचा मांज्या मारुन
त्याची आम्हाला शुद्ध न राहायची
रखरखत उन्ह असायच डोक्यावर
घरी जायची इच्छा नसायची
काठी घेवुन जेव्हा ताई यायची
मग मात्र त्यावेळी मन मारायची
वाड्यावाड्यावर सुहासिनींचा गराडा
ववसा घ्यायला एकत्र जमायचा
मांडलेल खारिक खोबरे उचलायला
आम्हा मुलांचा घोळका नेहमीच जायचा
नंतर सर्व एकत्र मिळुन
तिळगु्ळ वाटपाचा कार्यक्रम करायची
किंचीत कारणी तुटलेली नाती
आकस्मितपने जुळुन यायची
देवाला नैवेद्य दाखवताच
सर्वजण जेवायला बसायचो
पुरण पोळीच गोड जेवण
ताव मारुन फ़स्त करायचो
गेले ते दिवस आता
गाव आता आठवत
संक्रातीचा दिवस आठवला की
लहानपन अश्रुंसह मनात साठत
___________
लक्ष्मण शिर्के
आम्हा मुलांची मज्जा असायची
भरपुर खेळायला बागडायला मिळणार
नेहमीच आमची शिवापाणी चालायची
गावच्या वरती टेकडीवर जायला
सर्व मुले एकदम पळायची
सकाळपासुन संध्याकाळपर्यंत
तहानभुक विसरुन पतंग खेळायची
कधी कधी थट्टामस्करी
हळु हळु भांडणावर जायची
एकमेकाचा मांज्या मारुन
त्याची आम्हाला शुद्ध न राहायची
रखरखत उन्ह असायच डोक्यावर
घरी जायची इच्छा नसायची
काठी घेवुन जेव्हा ताई यायची
मग मात्र त्यावेळी मन मारायची
वाड्यावाड्यावर सुहासिनींचा गराडा
ववसा घ्यायला एकत्र जमायचा
मांडलेल खारिक खोबरे उचलायला
आम्हा मुलांचा घोळका नेहमीच जायचा
नंतर सर्व एकत्र मिळुन
तिळगु्ळ वाटपाचा कार्यक्रम करायची
किंचीत कारणी तुटलेली नाती
आकस्मितपने जुळुन यायची
देवाला नैवेद्य दाखवताच
सर्वजण जेवायला बसायचो
पुरण पोळीच गोड जेवण
ताव मारुन फ़स्त करायचो
गेले ते दिवस आता
गाव आता आठवत
संक्रातीचा दिवस आठवला की
लहानपन अश्रुंसह मनात साठत
___________
लक्ष्मण शिर्के
तुलाच जिंकायचय ( kavita )
नजर भिरभिरत होती
सर्वांच्या नजरा रोखल्या होत्या माझ्यावर
क्षण अन क्षण हैराण करत होता मला
सेकंदासेकंदाला उदासिनता वाढत होती
चहुबाजुंनी आवाज येत होता...... तुलाच जिंकायचय
प्रेक्षकांचे डोळे लागुन राहिले होते
माझे सुद्धा आता चित्त स्थिर राहत नव्हते
कुणा कुणाच्या ईच्छा पुर्ण करायच्या
मनात गणितातील बेरिज, वजाबाकी, गुणाकार, भागाकार
सर्व काही एकदम गोंधळात टाकत होत... तुलाच जिंकायचय
श्वास अन श्वास एका विलक्षण ध्यासान पेटलेला
तरीपण मनाच्या एका कोपरयातुन दुसर मन होतच
नाहीस जिंकलास तर हे सगळे कशासाठी बसलेत
दोन्ही हाताच्या मुठी आवळुन घट्ट का... कशासाठी?
अशाच काहीश्या संभ्रमात छोट मन म्हणत होत.... तुलाच जिंकायचय
आणि त्यातच नरडीचा घोट घ्यायला टपलेला प्रतिस्पर्धी
त्याचे सुद्धा काहीतरी ध्येय असेलच ना
टप्प्याटप्प्याला वाढणारया चोहोकडील तुफान गर्दित
त्याच्यापण बाजुचा आवाज असेलच ना
त्यातुनही उठुन माझी अंधुक पण स्वच्छ नजर म्हणत होती...... तुलाच जिंकायचय
बघता बघता ती वेळ येवुन ठेपली
नजर आणि मन काळजाच्या कप्प्यात घट्ट केले
अस्तित्व पणाला लावलेल निर्भिड पन बावरलेल मन
अनुभव आणि कौशल्य पनाला लावत
ह्र्द्याची वाढलेली थरथर बोलत होती....... तुलाच जिंकायचय
अखेर हार नावाची उपमा घेउन मान खाली घालुन मट्कन बसलो
चहुबाजुने येणारा आवाज हळूहळु आकुंचन पावला
सगळीकडे शांतत्ता आणि स्तब्धता पसरली
अचानक एक पहाडासारखा हात जणु काही मदतीसाठी धावुन आला
मागे वळुन थरथरत्या उदासिन नजरेने पाहिले....... ....
स्पर्धेतील माझाच प्रतिस्पर्धी होता तो.. म्हणत होता... उठ मित्रा......... तुलाच जिंकायचय......
_______________
लक्ष्मण शिर्के
सर्वांच्या नजरा रोखल्या होत्या माझ्यावर
क्षण अन क्षण हैराण करत होता मला
सेकंदासेकंदाला उदासिनता वाढत होती
चहुबाजुंनी आवाज येत होता...... तुलाच जिंकायचय
प्रेक्षकांचे डोळे लागुन राहिले होते
माझे सुद्धा आता चित्त स्थिर राहत नव्हते
कुणा कुणाच्या ईच्छा पुर्ण करायच्या
मनात गणितातील बेरिज, वजाबाकी, गुणाकार, भागाकार
सर्व काही एकदम गोंधळात टाकत होत... तुलाच जिंकायचय
श्वास अन श्वास एका विलक्षण ध्यासान पेटलेला
तरीपण मनाच्या एका कोपरयातुन दुसर मन होतच
नाहीस जिंकलास तर हे सगळे कशासाठी बसलेत
दोन्ही हाताच्या मुठी आवळुन घट्ट का... कशासाठी?
अशाच काहीश्या संभ्रमात छोट मन म्हणत होत.... तुलाच जिंकायचय
आणि त्यातच नरडीचा घोट घ्यायला टपलेला प्रतिस्पर्धी
त्याचे सुद्धा काहीतरी ध्येय असेलच ना
टप्प्याटप्प्याला वाढणारया चोहोकडील तुफान गर्दित
त्याच्यापण बाजुचा आवाज असेलच ना
त्यातुनही उठुन माझी अंधुक पण स्वच्छ नजर म्हणत होती...... तुलाच जिंकायचय
बघता बघता ती वेळ येवुन ठेपली
नजर आणि मन काळजाच्या कप्प्यात घट्ट केले
अस्तित्व पणाला लावलेल निर्भिड पन बावरलेल मन
अनुभव आणि कौशल्य पनाला लावत
ह्र्द्याची वाढलेली थरथर बोलत होती....... तुलाच जिंकायचय
अखेर हार नावाची उपमा घेउन मान खाली घालुन मट्कन बसलो
चहुबाजुने येणारा आवाज हळूहळु आकुंचन पावला
सगळीकडे शांतत्ता आणि स्तब्धता पसरली
अचानक एक पहाडासारखा हात जणु काही मदतीसाठी धावुन आला
मागे वळुन थरथरत्या उदासिन नजरेने पाहिले....... ....
स्पर्धेतील माझाच प्रतिस्पर्धी होता तो.. म्हणत होता... उठ मित्रा......... तुलाच जिंकायचय......
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लक्ष्मण शिर्के
1.11.2010
तीच रुसण
तीच रुसण अन् तीच फुगन
तुला त्रास नाही का होत
खूपच विचार करतोस तिचा
ती तुला समजावून का नाही घेत?
___________
लक्ष्मण शिर्के
तुला त्रास नाही का होत
खूपच विचार करतोस तिचा
ती तुला समजावून का नाही घेत?
___________
लक्ष्मण शिर्के
गालावर उमटलेल्या खुणा
गालावर उमटलेल्या खुणा
मन तृप्तिची जाणीव करतात
क्षणभर सुख मिळून
कायमच्या त्या आठवणी उरतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
मन तृप्तिची जाणीव करतात
क्षणभर सुख मिळून
कायमच्या त्या आठवणी उरतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
कितीतरी वेळा पाहतो
राब राब राबूनसूद्धा
काही स्वप्ने अपुरी राहतात
कितीतरी वेळा पाहतो मी
मातेचे डोळे अनेकदा पानावतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
काही स्वप्ने अपुरी राहतात
कितीतरी वेळा पाहतो मी
मातेचे डोळे अनेकदा पानावतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
इच्छा आणि आकांक्षा
ती नेहमीच पूर्ण करते
आपल्या इच्छा आणि आकांक्षा
पाठबळ देते प्रत्येक वेळेस
ठेवून तीसुद्धा महत्वाकांक्षा
___________
लक्ष्मण शिर्के
आपल्या इच्छा आणि आकांक्षा
पाठबळ देते प्रत्येक वेळेस
ठेवून तीसुद्धा महत्वाकांक्षा
___________
लक्ष्मण शिर्के
वंदन त्या मातेला
आयुष्य हे मोलाचे माझे
तिच्यामुळे मी पाहीले
वंदन त्या मातेला
माझ्यासाठी कितीतरी हाल सोसले
___________
लक्ष्मण शिर्के
तिच्यामुळे मी पाहीले
वंदन त्या मातेला
माझ्यासाठी कितीतरी हाल सोसले
___________
लक्ष्मण शिर्के
त्या प्रिय मातेला
नसेल ती अस्तित्वात तर
नशिबालाच अर्थ नाही
त्या प्रिय मातेला बाकी
कसलाच स्वार्थ नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
नशिबालाच अर्थ नाही
त्या प्रिय मातेला बाकी
कसलाच स्वार्थ नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
चित्त तिच्याकडेच जात
खचन आणि निराश होण
माझपन हल्ली होत
मी दूर राहतो तिच्यापासून एकटा
चित्त तिच्याकडेच जात
___________
लक्ष्मण शिर्के
माझपन हल्ली होत
मी दूर राहतो तिच्यापासून एकटा
चित्त तिच्याकडेच जात
___________
लक्ष्मण शिर्के
दूर आहे मी
आईचा मायेचा हात
जेव्हा मला आठवतो
दूर आहे मी तिच्यापासून
डोळ्यात अश्रू साठवितो
___________
लक्ष्मण शिर्के
जेव्हा मला आठवतो
दूर आहे मी तिच्यापासून
डोळ्यात अश्रू साठवितो
___________
लक्ष्मण शिर्के
माझ्या त्या ममत्वाला
खिन्न डोळे हसरा चेहरा
नाही विसरू शकणार
माझ्या त्या ममत्वाला
कधीही नाही मुकनार
___________
लक्ष्मण शिर्के
नाही विसरू शकणार
माझ्या त्या ममत्वाला
कधीही नाही मुकनार
___________
लक्ष्मण शिर्के
फावल्या वेळात
क्षणांचा हा खेळ आपला
पाहण्यास ही वेळ नसतो
चांदण्या रात्री टिपुर चांदणे
फावल्या वेळात मोजत बसतो
___________
लक्ष्मण शिर्के
पाहण्यास ही वेळ नसतो
चांदण्या रात्री टिपुर चांदणे
फावल्या वेळात मोजत बसतो
___________
लक्ष्मण शिर्के
मिटुन जातो सगळा दुरावा
स्वप्नांची जेव्हा होते जीत
मनास मिळतो माझ्या सुखावा
तिच्या विचारात आधीन होऊन
मिटुन जातो सगळा दुरावा
___________
लक्ष्मण शिर्के
मनास मिळतो माझ्या सुखावा
तिच्या विचारात आधीन होऊन
मिटुन जातो सगळा दुरावा
___________
लक्ष्मण शिर्के
पापणी माझी पुन्हा भिजली
हळूच स्वप्नात येऊन
ती कानात काही कुजबुजली
पुन्हा येणार नाही सांगताच
पापणी माझी पुन्हा भिजली
___________
लक्ष्मण शिर्के
ती कानात काही कुजबुजली
पुन्हा येणार नाही सांगताच
पापणी माझी पुन्हा भिजली
___________
लक्ष्मण शिर्के
छोटी सुद्धा चुक पकडायला
जबाबदारी स्वीकारतात डोळे
नाकारत नाहीत कधी
छोटी सुद्धा चुक पकडायला
डोळेच असतात सर्वाच्या आधी
___________
लक्ष्मण शिर्के
नाकारत नाहीत कधी
छोटी सुद्धा चुक पकडायला
डोळेच असतात सर्वाच्या आधी
___________
लक्ष्मण शिर्के
केविलवानी नज़र
गीत गातोय मीपन
घूमतोय आवाज़ दशदिशा
केविलवानी नज़र फिरते
आहे कुनाचीतरी वेडी आशा
___________
लक्ष्मण शिर्के
घूमतोय आवाज़ दशदिशा
केविलवानी नज़र फिरते
आहे कुनाचीतरी वेडी आशा
___________
लक्ष्मण शिर्के
उसळे तलवार
उसळे तलवार म्यानातुन
स्फुरण चढते मनोमनी
शत्रूपक्षावर चाल होते
फितूर बातमी आणतात कानी
___________
लक्ष्मण शिर्के
स्फुरण चढते मनोमनी
शत्रूपक्षावर चाल होते
फितूर बातमी आणतात कानी
___________
लक्ष्मण शिर्के
त्या ओठातले शब्द
तुझ्या त्या ओठातले शब्द
ओठातच का विरतात
पुन्हा पुन्हा माझ्या मनात
जसेच्या तसे का स्मरतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
ओठातच का विरतात
पुन्हा पुन्हा माझ्या मनात
जसेच्या तसे का स्मरतात
___________
लक्ष्मण शिर्के
स्वता पुढे जात नाही
मनुष्य प्राणी असाच आहे
स्वता पुढे जात नाही
दुसर्याकडे बोट दाखवून
स्वता जबाबदारी घेत नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
स्वता पुढे जात नाही
दुसर्याकडे बोट दाखवून
स्वता जबाबदारी घेत नाही
___________
लक्ष्मण शिर्के
शंभुराजे साकारायचय (कविता)
आयुष्यात एकच स्वप्न शंभुराजे साकारायचय
तो शुर सिंहाचा छावा हातुन एकदा तरी आकारायचय
मरणाला न भिणारी कधी आमी मराठ्याची पोर
शाहिर सुद्धा सांगुन गेल ही होती सर्वांच्या म्होर
बघतोयस काय असा टकामका लवुन मुजरा कर
शुर संभाजी पुढे आहे बोला एकसुरात हरहर
हातात भगवा घेउन पुढे खंडोबाचा मळवट भाळी
एकदाची स्वारी निघाली ठोकुन त्वेषाने आरोळी
येतो आम्ही काळजी नसावी जिंकण्याची हौस डोळी
निघतो एकदाचा शुर तो चिखल काटे पायदळी
झुंजविले औरंगजेबालाही ज्याने म्रुत्यु त्याच्यापुढे फिका
कुशाग्र शक्तिशाली शंभु जिंकण्यास ना शत्रुस कधी मोका
समशेर हाती घेताच लोपत होत्या चंद्र तारका
असा हा सिंहाचा छावा मराठ्यांचा होता सखा
बलिदान जाईल वाया त्याचे केले जर दुर्लक्ष
रक्त सांडलय मराठयांसाठी नेहमीच होता दक्ष
पन घात केला काळाने डाव एकदाचा साधला
जगदंबा जगदंबा शेवटचे बोल मुखावाटे वदला
नेहमीच असायचा पुढे जरी होता तो राजा
मैदान सोडायचा नाही कधी उडविल्याशिवाय शत्रुचा फ़ज्जा
सात वर्षे नाही ठेवुन दिला कुणा मायभुमीत पाय
एकदातरी शंभुराजे साकारायचाय माघार घेणार नाय
______________
लक्ष्मण शिर्के
तो शुर सिंहाचा छावा हातुन एकदा तरी आकारायचय
मरणाला न भिणारी कधी आमी मराठ्याची पोर
शाहिर सुद्धा सांगुन गेल ही होती सर्वांच्या म्होर
बघतोयस काय असा टकामका लवुन मुजरा कर
शुर संभाजी पुढे आहे बोला एकसुरात हरहर
हातात भगवा घेउन पुढे खंडोबाचा मळवट भाळी
एकदाची स्वारी निघाली ठोकुन त्वेषाने आरोळी
येतो आम्ही काळजी नसावी जिंकण्याची हौस डोळी
निघतो एकदाचा शुर तो चिखल काटे पायदळी
झुंजविले औरंगजेबालाही ज्याने म्रुत्यु त्याच्यापुढे फिका
कुशाग्र शक्तिशाली शंभु जिंकण्यास ना शत्रुस कधी मोका
समशेर हाती घेताच लोपत होत्या चंद्र तारका
असा हा सिंहाचा छावा मराठ्यांचा होता सखा
बलिदान जाईल वाया त्याचे केले जर दुर्लक्ष
रक्त सांडलय मराठयांसाठी नेहमीच होता दक्ष
पन घात केला काळाने डाव एकदाचा साधला
जगदंबा जगदंबा शेवटचे बोल मुखावाटे वदला
नेहमीच असायचा पुढे जरी होता तो राजा
मैदान सोडायचा नाही कधी उडविल्याशिवाय शत्रुचा फ़ज्जा
सात वर्षे नाही ठेवुन दिला कुणा मायभुमीत पाय
एकदातरी शंभुराजे साकारायचाय माघार घेणार नाय
______________
लक्ष्मण शिर्के
म्रुत्यु (कविता)
तो आला थांबला थोडा उभा राहिला शेजारी बसला
झिजलेल्या देहाकडे पाहुन म्हणाला असा रे तु कसला
काय केलेस जन्मापासुन सर्व यादी मागु लागला
एवढी वर्षे या दुनियेत कसा काय जगला
थरथरता देह नुसताच जागेवर खिळुन होता
नजर उघडत नव्हती डोळा डोळ्यास मिळुन होता
काय सांगु काय त्याला आत्मा होता घाबरलेला
सारीपाटाच्या कुठल्याही डावात कधीच न हरलेला
पण आज मात्र शांत आहे जिंकुनसुद्धा हरलाय
उत्तर देता येणारा तो क्षण सुद्धा आता सरलाय
शुष्क चेहरयाचे आज काहिच नव्हते चालत
गुढ्या पडलेला शांत चेहरा अजिबात नव्हता बोलत
आज मी जाणल होत घटका जवळ आली
विचारांच्या जाळ्यांनीच मती गुंग झाली
उठ आता वेळ संपली हसत हसत बोलला
मनाला जे वाटल होत पक्का ताळमेळ झाला
त्याच्याबरोबर उठुन आता शांतपणॆ जाव लागणार
स्वर्ग नरक काय असेल नसेल भोगावे लागणार
______________
लक्ष्मण शिर्के
झिजलेल्या देहाकडे पाहुन म्हणाला असा रे तु कसला
काय केलेस जन्मापासुन सर्व यादी मागु लागला
एवढी वर्षे या दुनियेत कसा काय जगला
थरथरता देह नुसताच जागेवर खिळुन होता
नजर उघडत नव्हती डोळा डोळ्यास मिळुन होता
काय सांगु काय त्याला आत्मा होता घाबरलेला
सारीपाटाच्या कुठल्याही डावात कधीच न हरलेला
पण आज मात्र शांत आहे जिंकुनसुद्धा हरलाय
उत्तर देता येणारा तो क्षण सुद्धा आता सरलाय
शुष्क चेहरयाचे आज काहिच नव्हते चालत
गुढ्या पडलेला शांत चेहरा अजिबात नव्हता बोलत
आज मी जाणल होत घटका जवळ आली
विचारांच्या जाळ्यांनीच मती गुंग झाली
उठ आता वेळ संपली हसत हसत बोलला
मनाला जे वाटल होत पक्का ताळमेळ झाला
त्याच्याबरोबर उठुन आता शांतपणॆ जाव लागणार
स्वर्ग नरक काय असेल नसेल भोगावे लागणार
______________
लक्ष्मण शिर्के
लग्न (कविता)
दारी मांडव सजला होता
सनई चौघडा वाजत होता
वरमाई अन वरबापाचा
तालच सगळा वेगळा होता
नवरीबाई लवकर उठल्या
लग्नादिवशी लवकर नटल्या
कलवरयापन गोळा झाल्या
सारया मिळुनी हसत गटल्या
नवरी लाजे क्षणाक्षणाला
भाव आणुणी मनामनाला
घर सोडायचे आज तिला मग
अश्रु आले तिज नयनाला
थोड्यातच मग गडबड झाली
नवरोबाची आली स्वारी
भेटीगाठी घेण्यासाठी
चालु झाली सर्व तयारी
वेशीवरती नवरदेव आला
एकत्र झाले सारे गावकरी
वेशीत घेतल नवरोबाला
भेटुनी नारळ पान सुपारी
देव देव करुनी जोडा
हळदीसाठी मंडपात आला
जानवस्यातल्या सुहासिनींना
हळदिचा तो मान मिळाला
हळद लागता पंगत बारी
नवरदेव सजवायची तयारी
नवरीसुद्धा लाजत नटते
करुन साज श्रुंगार भारी
श्रिवंदन चालु झाले
वरहाडी पुढे नाचु लागले
घोड्यावर सावरत बसुन
नवरोबाचे मन रंगले
ब्राम्हणबुवा करतात घाई
नवरदेव कसा येत नाही
वेळ झाली लग्नाची आता
पोषाख पुकारत होते व्याही
लग्नाला सुरवात ही झाली
मंगलाष्टका म्हणु लागली
आली लग्न घटका म्हणताच
वाजंत्र्यांची गडबड झाली
एकदाचे ते लग्न लागले
वेळ झाली निघण्याची
पाय निघेना नवरीला आता
कड ओलावली पापण्यांची
समजुत घालता वरबाप वरमाई
त्यांची पण दमछाक होई
मुलगी आता जाणार आपली
मन दुखाने भरुन येई
मुलगी गेली तिच्या घरी
ओसाड पडला मांडव दारी
लग्न गाठ ही पडली आता
नांदो सुख सौख्य भारी
______________
लक्ष्मण शिर्के
सनई चौघडा वाजत होता
वरमाई अन वरबापाचा
तालच सगळा वेगळा होता
नवरीबाई लवकर उठल्या
लग्नादिवशी लवकर नटल्या
कलवरयापन गोळा झाल्या
सारया मिळुनी हसत गटल्या
नवरी लाजे क्षणाक्षणाला
भाव आणुणी मनामनाला
घर सोडायचे आज तिला मग
अश्रु आले तिज नयनाला
थोड्यातच मग गडबड झाली
नवरोबाची आली स्वारी
भेटीगाठी घेण्यासाठी
चालु झाली सर्व तयारी
वेशीवरती नवरदेव आला
एकत्र झाले सारे गावकरी
वेशीत घेतल नवरोबाला
भेटुनी नारळ पान सुपारी
देव देव करुनी जोडा
हळदीसाठी मंडपात आला
जानवस्यातल्या सुहासिनींना
हळदिचा तो मान मिळाला
हळद लागता पंगत बारी
नवरदेव सजवायची तयारी
नवरीसुद्धा लाजत नटते
करुन साज श्रुंगार भारी
श्रिवंदन चालु झाले
वरहाडी पुढे नाचु लागले
घोड्यावर सावरत बसुन
नवरोबाचे मन रंगले
ब्राम्हणबुवा करतात घाई
नवरदेव कसा येत नाही
वेळ झाली लग्नाची आता
पोषाख पुकारत होते व्याही
लग्नाला सुरवात ही झाली
मंगलाष्टका म्हणु लागली
आली लग्न घटका म्हणताच
वाजंत्र्यांची गडबड झाली
एकदाचे ते लग्न लागले
वेळ झाली निघण्याची
पाय निघेना नवरीला आता
कड ओलावली पापण्यांची
समजुत घालता वरबाप वरमाई
त्यांची पण दमछाक होई
मुलगी आता जाणार आपली
मन दुखाने भरुन येई
मुलगी गेली तिच्या घरी
ओसाड पडला मांडव दारी
लग्न गाठ ही पडली आता
नांदो सुख सौख्य भारी
______________
लक्ष्मण शिर्के
देव देव्हारा (कविता)
मंद ज्योत जळत आहे
देवाच्या या देव्हारयात
उदबत्तीचा सुगंध दरवळुन
पसरला या गाभारयात
सुर्य उगवतीला असताना
पुजा अर्चा होत असे
ओझरत्या संध्यासमयी
दिवा पणती लावितसे
सकाळच्या रम्य प्रहरी
भुपाळी म्हणताना
हसत असतो खुल्या मनाने
निरव शांतता असताना
तोच माझा जीव
तोच माझा सखा
असे तो सुद्धा
देव्हारयाचा भुका
जेव्हा जेव्हा मी पामर
पाऊल तेथे टाकतो
वेडा होऊन त्याच्यासाठी
दोन्ही कर जोडुन झुकतो
गाभारयातल्या या देव्हारयात
आहे तो शांत उभा
घराला आलय घरपन
वाढतेय त्याच्यामुळे शोभा
______________
लक्ष्मण शिर्के
देवाच्या या देव्हारयात
उदबत्तीचा सुगंध दरवळुन
पसरला या गाभारयात
सुर्य उगवतीला असताना
पुजा अर्चा होत असे
ओझरत्या संध्यासमयी
दिवा पणती लावितसे
सकाळच्या रम्य प्रहरी
भुपाळी म्हणताना
हसत असतो खुल्या मनाने
निरव शांतता असताना
तोच माझा जीव
तोच माझा सखा
असे तो सुद्धा
देव्हारयाचा भुका
जेव्हा जेव्हा मी पामर
पाऊल तेथे टाकतो
वेडा होऊन त्याच्यासाठी
दोन्ही कर जोडुन झुकतो
गाभारयातल्या या देव्हारयात
आहे तो शांत उभा
घराला आलय घरपन
वाढतेय त्याच्यामुळे शोभा
______________
लक्ष्मण शिर्के
ज्याची त्याची किमया (कविता)
जिवन जगण्याची प्रत्येकाची पद्धतच वेगळी असते
ज्याची त्याची किमया ज्याला त्याला आगळी असते
कुणी शिकत शिकत चुकत असतो
तर कुणी चुकत चुकत शिकत असतो
पन चुकत चुकत शिकण्याची पद्धतच वेगळी असते
ज्याची त्याची किमया ज्याला त्याला आगळी असते
कुणी स्वप्नात जीवन पहात असतो
तर कुणी जिवनात स्वप्न रंगवत असतो
पन स्वप्नात जीवन पाहण्याची पद्धतच वेगळी असते
ज्याची त्याची किमया ज्याला त्याला आगळी असते
कुणी स्वरात कंठ आळवत असतो
तर कुणी कंठात स्वर मिळवत असतो
पन स्वरात कंठ आळवण्याची पद्धतच वेगळी असते
ज्याची त्याची किमया ज्याला त्याला आगळी असते
कुणी दुसरयावर आगपाखड करीत असतो
तर कुणी आगपाखड दुसरयाकडुन स्विकारत असतो
पन दुसरयावर आगपाखड करण्याची पद्धतच वेगळी असते
ज्याची त्याची किमया ज्याला त्याला आगळी असते
______________
लक्ष्मण शिर्के
ज्याची त्याची किमया ज्याला त्याला आगळी असते
कुणी शिकत शिकत चुकत असतो
तर कुणी चुकत चुकत शिकत असतो
पन चुकत चुकत शिकण्याची पद्धतच वेगळी असते
ज्याची त्याची किमया ज्याला त्याला आगळी असते
कुणी स्वप्नात जीवन पहात असतो
तर कुणी जिवनात स्वप्न रंगवत असतो
पन स्वप्नात जीवन पाहण्याची पद्धतच वेगळी असते
ज्याची त्याची किमया ज्याला त्याला आगळी असते
कुणी स्वरात कंठ आळवत असतो
तर कुणी कंठात स्वर मिळवत असतो
पन स्वरात कंठ आळवण्याची पद्धतच वेगळी असते
ज्याची त्याची किमया ज्याला त्याला आगळी असते
कुणी दुसरयावर आगपाखड करीत असतो
तर कुणी आगपाखड दुसरयाकडुन स्विकारत असतो
पन दुसरयावर आगपाखड करण्याची पद्धतच वेगळी असते
ज्याची त्याची किमया ज्याला त्याला आगळी असते
______________
लक्ष्मण शिर्के
उकल (कविता)
नेहमीच अडचणीवर मात सर्वस्वी होत नाही
खर तर अडचण आल्यावर पर्याय निवडण होत
पर्याय आले की मग अनेक मार्गांच जाळ दिसत
मग स्वाभाविकच उकल करण अवघड होवुन बसत
प्रश्न तर अनेक असतात उत्तरे आपल्याकडे नसतात
काहीही भिरकावुन देतो उत्तरे... परिक्षक आपोआपच फ़सतात
त्यांना तरी काय म्हणायच काळाच गणितच वेगळ असत
मग स्वाभाविकच उकल करण अवघड होवुन बसत
विरहाच पन वेगळच असत माणुस विचार करत बसत
गोष्ट मिळणारी असते तरी मन कावरबावर होत असत
मनात एक खंत साठते आपलच मन आपल्यावर रुसत
मग स्वाभाविकच उकल करण अवघड होवुन बसत
निसर्ग सुद्धा कधी कधी आपल्यावर कोपतो
आणि कधी माणसामाणसातील मन आनंदान जपतो
आनंद तर कधी दुखाच्या छायेत आपल अस्तित्व असत
मग स्वाभाविकच उकल करण अवघड होवुन बसत
उकल ही अशीच प्रत्येक ठिकाणी करावी लागते
समोर येणारी परिस्थिती त्यासही पर्याय मागते
सभोवतालच्या प्रत्येक परिस्थितीच असत गणित असत
मग स्वाभाविकच उकल करण अवघड होवुन बसत
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लक्ष्मण शिर्के
खर तर अडचण आल्यावर पर्याय निवडण होत
पर्याय आले की मग अनेक मार्गांच जाळ दिसत
मग स्वाभाविकच उकल करण अवघड होवुन बसत
प्रश्न तर अनेक असतात उत्तरे आपल्याकडे नसतात
काहीही भिरकावुन देतो उत्तरे... परिक्षक आपोआपच फ़सतात
त्यांना तरी काय म्हणायच काळाच गणितच वेगळ असत
मग स्वाभाविकच उकल करण अवघड होवुन बसत
विरहाच पन वेगळच असत माणुस विचार करत बसत
गोष्ट मिळणारी असते तरी मन कावरबावर होत असत
मनात एक खंत साठते आपलच मन आपल्यावर रुसत
मग स्वाभाविकच उकल करण अवघड होवुन बसत
निसर्ग सुद्धा कधी कधी आपल्यावर कोपतो
आणि कधी माणसामाणसातील मन आनंदान जपतो
आनंद तर कधी दुखाच्या छायेत आपल अस्तित्व असत
मग स्वाभाविकच उकल करण अवघड होवुन बसत
उकल ही अशीच प्रत्येक ठिकाणी करावी लागते
समोर येणारी परिस्थिती त्यासही पर्याय मागते
सभोवतालच्या प्रत्येक परिस्थितीच असत गणित असत
मग स्वाभाविकच उकल करण अवघड होवुन बसत
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लक्ष्मण शिर्के
1.07.2010
निज निज सखे (कविता)
निज निज सखे मला झोप येत नाही
विचार करुदे आता मला आयुष्याचा काही
का आलो असे आपण घरच्यांना जुमानुन
प्रेमळ त्या पाल्यांना तोडले आपल्या प्रेमाला मानुन !!
काय बरे चुक झाली मोठे करुन त्यांची
कुठे ते कमी पडले देण्यास रोजीरोटी
पोटाची तिडिक पाहुन नाही पाहिली तळहातची फ़ोडी
म्हनुन का आपणच विस्कटवतोय आपल्या कुटुंबाची घडी
विचार कर आयुष्याचा कसे राहु आयुष्यभर
जन्मदात्यांनापन आठव नको स्मरु वरवर
अल्लड या प्रेमापोटी आपणच चुकलो आहे
दोन दिवसही वाटुन राहिलेत आयुष्यालाच मुकलो आहे
रागावले आई बाबा विचार जेव्हा सांगितला
क्षणिक रागापाई आपण अविचारी निर्णय घेतला
काय वाईट सांगत होते आतापर्यंत सांभाळ केला
चार दिवसांच्या प्रेमासाठी त्या प्रेमाचा विसरच झाला
उठ उठ सखे जाऊ आपण आपुल्या घरा
नकोय आपणास असा हा एकांतातला निवारा
तुझ्या माझ्या जन्मदात्यांनी आटवलाय प्रेमाचा झरा
प्रवास आपल्या प्रेमाचा कुटुंबासमवेतच बरा
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लक्ष्मण शिर्के
विचार करुदे आता मला आयुष्याचा काही
का आलो असे आपण घरच्यांना जुमानुन
प्रेमळ त्या पाल्यांना तोडले आपल्या प्रेमाला मानुन !!
काय बरे चुक झाली मोठे करुन त्यांची
कुठे ते कमी पडले देण्यास रोजीरोटी
पोटाची तिडिक पाहुन नाही पाहिली तळहातची फ़ोडी
म्हनुन का आपणच विस्कटवतोय आपल्या कुटुंबाची घडी
विचार कर आयुष्याचा कसे राहु आयुष्यभर
जन्मदात्यांनापन आठव नको स्मरु वरवर
अल्लड या प्रेमापोटी आपणच चुकलो आहे
दोन दिवसही वाटुन राहिलेत आयुष्यालाच मुकलो आहे
रागावले आई बाबा विचार जेव्हा सांगितला
क्षणिक रागापाई आपण अविचारी निर्णय घेतला
काय वाईट सांगत होते आतापर्यंत सांभाळ केला
चार दिवसांच्या प्रेमासाठी त्या प्रेमाचा विसरच झाला
उठ उठ सखे जाऊ आपण आपुल्या घरा
नकोय आपणास असा हा एकांतातला निवारा
तुझ्या माझ्या जन्मदात्यांनी आटवलाय प्रेमाचा झरा
प्रवास आपल्या प्रेमाचा कुटुंबासमवेतच बरा
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लक्ष्मण शिर्के
कुजबुज ही मंद का (कविता)
कधी आलिस सांगायचे तरी ओठ अजुन बंद का?
श्वासही आरक्त झाला कुजबुज ही मंद का?
आज अचानक असे काय झाले
माझ्याकडुन तुज काय सांगु राहिले
नेहमीसारखा हसरा चेहरा
का झालाय ओसाड किनारा
रुसुनी काय तुज मिळणार आहे
थोडी निशब्द भावना मज कळणार आहे?
भिरकावुन दे सारे बंधन
क्षणभर आठव मनीचे स्पंदन
का उसळती ह्र्दयी माझ्या
अम्रुताच्या धुंद लाटा
तुफान वावटळीत सापडलेल्या
पालापाचोळा माजलेल्या वाटा
संपवुन टाक हे आता मुकेपन
निशिगंध बघ दरवळतोय छान
रातरानीच्या फुलाचा गंध
ओझरतोय कसा मंद सुगंध
बघ तो वारा सुद्धा मुकाटपणे
तुझ्याकडेच पाहुन डोळे लुकवतोय
तुझ्या मनीचे शांत वादळ
निसर्गाची सुद्धा होतेय हळहळ
आठव ते कोजागिरिचे चांदणे
नको ठेवुस आता बंधने
ये अशी बाहुत माझ्या आता
फुलुदे व्रुक्ष वेली लता
कधी आलिस सांगायचे तरी ओठ अजुन बंद का?
श्वासही आरक्त झाला कुजबुज ही मंद का?
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लक्ष्मण शिर्के
श्वासही आरक्त झाला कुजबुज ही मंद का?
आज अचानक असे काय झाले
माझ्याकडुन तुज काय सांगु राहिले
नेहमीसारखा हसरा चेहरा
का झालाय ओसाड किनारा
रुसुनी काय तुज मिळणार आहे
थोडी निशब्द भावना मज कळणार आहे?
भिरकावुन दे सारे बंधन
क्षणभर आठव मनीचे स्पंदन
का उसळती ह्र्दयी माझ्या
अम्रुताच्या धुंद लाटा
तुफान वावटळीत सापडलेल्या
पालापाचोळा माजलेल्या वाटा
संपवुन टाक हे आता मुकेपन
निशिगंध बघ दरवळतोय छान
रातरानीच्या फुलाचा गंध
ओझरतोय कसा मंद सुगंध
बघ तो वारा सुद्धा मुकाटपणे
तुझ्याकडेच पाहुन डोळे लुकवतोय
तुझ्या मनीचे शांत वादळ
निसर्गाची सुद्धा होतेय हळहळ
आठव ते कोजागिरिचे चांदणे
नको ठेवुस आता बंधने
ये अशी बाहुत माझ्या आता
फुलुदे व्रुक्ष वेली लता
कधी आलिस सांगायचे तरी ओठ अजुन बंद का?
श्वासही आरक्त झाला कुजबुज ही मंद का?
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लक्ष्मण शिर्के
मी एक शेतकरी (कविता)
मी एक शेतकरी दादानु शेती माजी माय
घाम गाळुन कष्ट करुन सुदा कायच मिळत न्हाय
सरकार देतया मोठमोठ्या योजना आमच्यापतुर यत नाय
पिकाला पन भाव म्हणावा तेवढा भेटत नाय
निसर्ग पन कोपतो या पावसाला म्हणाव काय
यळ काळ बघत नाय मोसमाला पाउस यळवर नाय
कर्ज व्हते खंडीभर सावकाराची मागायची घाय
घरात दाणा नसला तर त्याला तरी देणार काय
घरची चुल माझी कितींदा तरी पेटत नाय
जीवाभावाची लेकर रडताना पाहुन डोळ्यात पाणी हुब राय
त्यांची साळा पुस्तक कराया खिसा पुरा खाली हाय
आता नको फ़ुड बघु म्हनुन वय शिकायच निगुन जाय
आसा मी यड्यावाणी पन कर्माला दोस देत राय
इख घेण यवढ्च बाकी दुसरा पर्याय नाय
जगण माज हराम झालय सांगा करु मि काय
मी एक शेतकरी दादानु शेती माजी माय
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लक्ष्मण शिर्के
घाम गाळुन कष्ट करुन सुदा कायच मिळत न्हाय
सरकार देतया मोठमोठ्या योजना आमच्यापतुर यत नाय
पिकाला पन भाव म्हणावा तेवढा भेटत नाय
निसर्ग पन कोपतो या पावसाला म्हणाव काय
यळ काळ बघत नाय मोसमाला पाउस यळवर नाय
कर्ज व्हते खंडीभर सावकाराची मागायची घाय
घरात दाणा नसला तर त्याला तरी देणार काय
घरची चुल माझी कितींदा तरी पेटत नाय
जीवाभावाची लेकर रडताना पाहुन डोळ्यात पाणी हुब राय
त्यांची साळा पुस्तक कराया खिसा पुरा खाली हाय
आता नको फ़ुड बघु म्हनुन वय शिकायच निगुन जाय
आसा मी यड्यावाणी पन कर्माला दोस देत राय
इख घेण यवढ्च बाकी दुसरा पर्याय नाय
जगण माज हराम झालय सांगा करु मि काय
मी एक शेतकरी दादानु शेती माजी माय
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लक्ष्मण शिर्के
पुन्हा होतेय सुरुवात (कविता)
पुन्हा होतेय सुरुवात आता
मैफ़िल सुद्धा रंगली जाइल
मैफ़िलीत या माझ्या
रसिकांची मने भंगली जातील
खुप दिवस होते बंद
दुष्काळच हटत नव्हता
मनाचा मनाशी झालेला गोंधळ
कसलाच मिटत नव्हता
आता झालोय सज्ज
आलाय आता नवा जोम
अर्पिले जाइल कवितेशी तन आणि मन
स्पर्शुनी जाइल रोम रोम
होइल चालु नवे पर्व
विसरेन आता बालिशपणा सर्व
फ़क्त आता असेल एकच चित्त
हातच्या माझ्या लेखणीवर गर्व
झिडकारुनी सर्व अंधकार
स्वप्न करायचय साकार
आइबापान दिलेल्या संस्क्रुतीलापन
द्यायचाय आता नवीन आकार
मी एक साधा शेतकरी
साध आणि सुटसुटीत लिखाण
वरवर जरी वाचल तरी
येइल शब्दाची प्रत्येकाला जाण
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लक्ष्मण शिर्के
मैफ़िल सुद्धा रंगली जाइल
मैफ़िलीत या माझ्या
रसिकांची मने भंगली जातील
खुप दिवस होते बंद
दुष्काळच हटत नव्हता
मनाचा मनाशी झालेला गोंधळ
कसलाच मिटत नव्हता
आता झालोय सज्ज
आलाय आता नवा जोम
अर्पिले जाइल कवितेशी तन आणि मन
स्पर्शुनी जाइल रोम रोम
होइल चालु नवे पर्व
विसरेन आता बालिशपणा सर्व
फ़क्त आता असेल एकच चित्त
हातच्या माझ्या लेखणीवर गर्व
झिडकारुनी सर्व अंधकार
स्वप्न करायचय साकार
आइबापान दिलेल्या संस्क्रुतीलापन
द्यायचाय आता नवीन आकार
मी एक साधा शेतकरी
साध आणि सुटसुटीत लिखाण
वरवर जरी वाचल तरी
येइल शब्दाची प्रत्येकाला जाण
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लक्ष्मण शिर्के
वाट माझी पाहताना
वाट माझी पाहताना तुला
अंधार झालेला उमजला नाही
कस काय या आंधळ्या नात्याचा
गंध हा समजला नाही
नाही मी इतका निर्दयी वेडे
मी आहे तसाच आहे
नाही घेत कुणाचा आधार
मी निशब्द उभा आहे
देइन मी तुला सावली
जरी नसलो समोर मी
म्रुगजळ मी असलो तरी
मनोकामना पुर्ण होइल ती
प्रत्येक वळणावर तु अशी
एकटी पडणार नाहीस
असेन साथीला सखा बनुनी
खात्रि आहे मित्रप्रेम सोडणार नाहीस
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लक्ष्मण शिर्के
अंधार झालेला उमजला नाही
कस काय या आंधळ्या नात्याचा
गंध हा समजला नाही
नाही मी इतका निर्दयी वेडे
मी आहे तसाच आहे
नाही घेत कुणाचा आधार
मी निशब्द उभा आहे
देइन मी तुला सावली
जरी नसलो समोर मी
म्रुगजळ मी असलो तरी
मनोकामना पुर्ण होइल ती
प्रत्येक वळणावर तु अशी
एकटी पडणार नाहीस
असेन साथीला सखा बनुनी
खात्रि आहे मित्रप्रेम सोडणार नाहीस
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लक्ष्मण शिर्के
माणुसकीला जपून ठेवायच (कविता)
ठरवल होत बरच काही
मातीतल्या माणसातच राहायच
त्या रूक्ष मातिसन्गे खेळत
निसर्गातुन मंजुळ गीत गायच
चिखलात रुतनार्या कमळाप्रमाणे
मूळ घट्ट धरून राहायच
माणसाला दुरून मात्र
आपनातील सौंदर्य दाखवायच
पंखात बळ घेऊन
देशात या भरकटायच
दिवस रात्र मुलूख आठवत
कल्पनेच्या गावात राहायच
खुल्या या आसमन्तात
पक्षी बनून विहारायच
आकाशातुन सृष्टी कशी दिसते
डोळ्यातून सुख चाखायच
मिटलेल्या श्वासांना पुन्हा
जिवंत अस्तित्वात आनायच
भावभावनांच्या या खेळात
भरभरून रन्गायच
नदीत जाऊन डुंबून
पुन्हा काठावर यायच
मिळनार्या त्या आनन्दाला
पुन्हा पुन्हा भिडायच
स्वप्न पाठीशी घेऊन
पुन्हा पुन्हा परतायच
काही वेगळे करता आले नाही तरी
माणसातल्या माणुसकीला जपून ठेवायच
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लक्ष्मण शिर्के
मातीतल्या माणसातच राहायच
त्या रूक्ष मातिसन्गे खेळत
निसर्गातुन मंजुळ गीत गायच
चिखलात रुतनार्या कमळाप्रमाणे
मूळ घट्ट धरून राहायच
माणसाला दुरून मात्र
आपनातील सौंदर्य दाखवायच
पंखात बळ घेऊन
देशात या भरकटायच
दिवस रात्र मुलूख आठवत
कल्पनेच्या गावात राहायच
खुल्या या आसमन्तात
पक्षी बनून विहारायच
आकाशातुन सृष्टी कशी दिसते
डोळ्यातून सुख चाखायच
मिटलेल्या श्वासांना पुन्हा
जिवंत अस्तित्वात आनायच
भावभावनांच्या या खेळात
भरभरून रन्गायच
नदीत जाऊन डुंबून
पुन्हा काठावर यायच
मिळनार्या त्या आनन्दाला
पुन्हा पुन्हा भिडायच
स्वप्न पाठीशी घेऊन
पुन्हा पुन्हा परतायच
काही वेगळे करता आले नाही तरी
माणसातल्या माणुसकीला जपून ठेवायच
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लक्ष्मण शिर्के
येशिल ना पुन्हा (कविता)
येशिल ना पुन्हा
खिड़कीत मी बसलोय
या शांत कातरवेळी
आठवनी काढत हसलोय
कस मी समजनार आपली
शेवटची भेट होती
तोंडाने तर मूक होतीस
पन नज़रेने बोलत होती
माझ्याही तोंडुन गेला असेल ग
एखाद दूसरा वेडा शब्द
मग त्यावर तू पन असा का
हट्ट धरून राहायच निशब्द
सार समजुन सुद्धा तेव्हा
न समजल्यासारखे दाखवलेस तू
वेळ निघून गेली होती तरी
नज़रेने थोडा वेळ अडवलेस तू
मीच आता प्रयत्न करेन
गप्प पडुन राहन्याचा
कारण नंतर मलाच त्रास होतो
आशा अविचारी बोलन्याचा
फकत एकदाच परतुनी ये
इच्छा नसेल तरी तुझी
तुझा असेल तो राग काढ माझ्यावर
समजेन समजुत काढतेस माझी
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लक्ष्मण शिर्के
खिड़कीत मी बसलोय
या शांत कातरवेळी
आठवनी काढत हसलोय
कस मी समजनार आपली
शेवटची भेट होती
तोंडाने तर मूक होतीस
पन नज़रेने बोलत होती
माझ्याही तोंडुन गेला असेल ग
एखाद दूसरा वेडा शब्द
मग त्यावर तू पन असा का
हट्ट धरून राहायच निशब्द
सार समजुन सुद्धा तेव्हा
न समजल्यासारखे दाखवलेस तू
वेळ निघून गेली होती तरी
नज़रेने थोडा वेळ अडवलेस तू
मीच आता प्रयत्न करेन
गप्प पडुन राहन्याचा
कारण नंतर मलाच त्रास होतो
आशा अविचारी बोलन्याचा
फकत एकदाच परतुनी ये
इच्छा नसेल तरी तुझी
तुझा असेल तो राग काढ माझ्यावर
समजेन समजुत काढतेस माझी
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लक्ष्मण शिर्के
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