प्रयत्नाच्याही पुढे जावुन
अपार कष्ट मी करतो
पन नशिबच नसत जेव्हा
आपोआपच पुढे असुनही हरतो
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लक्ष्मण शिर्के
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प्रश्न नसतो हरण्या-जिंकण्याचा
मला दोन्ही सुद्धा आवडत
पन आज कालच्या अन्याय पाहुन
हतबल मन निराशेमाग दवडत
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लक्ष्मण शिर्के
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येशिल तरी का तु आज?
विनवितोय मी पुन्हा पुन्हा
कधी तुझ्या मनाला एकदाचा
फुटेल खरया मायेचा पान्हा
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लक्ष्मण शिर्के
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मनात जेव्हापासुन माझ्या
वाहु लागले प्रेम वारे
जागतोय मी रात्र रात्र
मोजतोय आकाशी तारे
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लक्ष्मण शिर्के
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रडत नाही मी कधी
उर फ़क्त दाटुन येतो
मनातुन आलेले अश्रु
दोन्ही नयनी वाटुन घेतो
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लक्ष्मण शिर्के
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