1.30.2010

आठवते मज आई

आठवते मज आई
नयनी वाहते अश्रु
नाही शकत कधीच मी
तिच्या उपकारांना विसरु
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लक्ष्मण शिर्के
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थोर तुझे उपकार आई
जन्म दिलास मला
सांभाळ केलास तळहाताच्या फोडाप्रमाने
कस आता विसरु तुला
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लक्ष्मण शिर्के
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हसुन हसुन पोट दुखते
असे सगळॆच म्हनतात
तरी पन पोट धरुन खो खो
हास्य मनी का आणतात
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लक्ष्मण शिर्के
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या वेळची गुलाबी थंडी
थोडी वेगळीच आहे
मन सुखावणारा गारवा
मजा एक आगळीच आहे
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लक्ष्मण शिर्के
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का असंख्य प्रश्न उभे राहतात
माझ्याशी तु बोलताना
मुक का राहतेस अशी
माझ्या डोळ्यात तु पाहताना
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लक्ष्मण शिर्के

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