शुर आम्ही सरदार आम्हाला
काय कुणाची भिती
पण नेते, पुढारी आणि राजकारणी
काहीच मिळत नाही हाती
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लक्ष्मण शिर्के
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भिती ही सवयच आहे
कुणाकुणात ती असते
कितीही लपवायला गेली तरी
डोळ्यातुन ती दिसते
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लक्ष्मण शिर्के
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मित्रप्रेम हे असच असत
कधी हसत तर कधी बावरत
एकाचा थोडा जरी पाय घसरला
दुसर त्याला लगेच सावरत
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लक्ष्मण शिर्के
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त्यानच घडवलय आपल्याला
तोच सर्व काही देतो
म्हनुन तर झोपता उठता
आपण त्याचे नाव घेतो
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लक्ष्मण शिर्के
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प्रेमाच्या सफल-विफलतेला
कधीच महत्व देवु नये
मन साथ देणार नसेल तर
इतका जीव लावु नये
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लक्ष्मण शिर्के
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