माझ्या कविता व चारोळ्या
8.23.2009
लाज जरा मनी धरा
अरे मागून कशाला येताय
पुढून चाल करा
भेकाडपणाची जात नका दाखवू
लाज जरा मनी धरा
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लक्ष्मण शिर्के
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